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________________ कार्य की दुनिया बनाई जा रही है। फिर उसे कहा जा रहा है कि यह कारण है, देह का अभिमान छूट जाए तो मोक्ष फले । मोक्ष फल नहीं है; मोक्ष के लिए कुछ करना जरूरी नहीं है। मोक्ष तुम्हारा स्वभाव है। मगर जनक भी अदभुत कुशल व्यक्ति होंगे। उनके सूत्र शीघ्र ही आएंगे, तब तुम समझोगे, उन्होंने कैसा अदभुत उत्तर दिया! 'तुझसे संसार उत्पन्न होता है, जैसे समुद्र से बुलबुला । इस प्रकार आत्मा को एक जान और ऐसा जान कर मोक्ष को प्राप्त हो। ' उदेति भवतो विश्व वारिधेरिव बुदवुदः । इति ज्ञात्वैकमात्मानमेवमेव लय ब्रज ।। इतनी ही भावना कर कि मुझसे संसार उत्पन्न हुआ है जैसे समुद्र में बुलबुला उत्पन्न होता है। और अपने को और जगत को स्वयं को और समष्टि को एक मान कर एक जान कर तू मोक्ष को प्राप्त हो जा। जैसे कि मोक्ष किसी जानने पर निर्भर है! जैसे मोक्ष के लिए कोई ज्ञान आवश्यक है! अगर मोक्ष के लिए कुछ भी आवश्यक है तो वह मोक्ष न रहा। क्योंकि जिस मोक्ष के लिए कोई कारण है, वह कारण पर निर्भर होगा; उसकी शर्त हो गई; वह कारण से बंधा होगा; किसी दिन कारण हट जाएगा तो मोक्ष गिर जाएगा। मोक्ष अकारण है। मोक्ष का कोई भी कारण नहीं है। तुमने अगर पूछा कि मैं कैसे मुक्त हो जाऊं तो तुम बंधने का नया उपाय पूछ रहे हो। तुम पूछ रहे हो कि मुझे अब कुछ और बताएं पुराने बंधन पुराने पड़ गए, उनमें अब रस नहीं आता; अब मैं कैसे मुक्त हो जाऊं? तो कोई कहता है, अब तुम योगासन करो, इससे मुक्त हो जाओगे। तो पहले तुम दुकान पर बैठे थे, गद्दी पर आसन लगा रहे थे, अब तुम बैठ गए कहीं जंगल में जा कर झाड़ के नीचे, योगासन लगाने लगे। मगर, जारी रहा काम। आकांक्षा भविष्य की रही । मोक्ष तो है ही! तुम कुछ न करो - मोक्ष है। जब तुम कुछ भी नहीं करते होओगे, उसी क्षण तुम्हें दिखाई पड़ेगा। क्योंकि करने से ऊर्जा मुक्त हुई कि फिर क्या करेगी? फिर देखेगी! कर्ता में ऊर्जा उलझी रहे तो साक्षी नहीं बन पाती। वही ऊर्जा जब कर्ता में नहीं उलझी होती, कुछ करने को नहीं होता, तो साक्षी बन जाती है। झेन गुरु अपने शिष्यों को कहते हैं? बस बैठो और कुछ न करो। इससे क्रांतिकारी सूत्र कभी दिया ही नहीं गया। वे कहते हैं, बस बैठो कुछ न करो। शिष्य बार-बार आता कि कुछ करने को दे दो। सदगुरु कहता है कुछ करने को दे दिया, बस शुरू हुआ गोरखधंधा ! : 'गोरखधंधा' शब्द बड़ा अदभुत शब्द है। यह गोरखनाथ से चला। क्योंकि जितनी विधियां गोरखनाथ ने खोजी, मेरे अलावा किसी और ने नहीं खोजी । गोरखधंधा ! मानते नहीं, कुछ करेंगे. करो! कुंडलिनी करो, नादब्रह्म करो! करने के बिना चैन नहीं है! तुम कहते हो, बिना कुछ किए तो हम बैठ ही नहीं सकते। तो मैं कहता हूं चलो ठीक है, कुछ करो! जब थक जाओगे करने से, किसी दिन जब
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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