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________________ जगेंगी, तब तुम्हारा सो जाने का मन होगा। तुम कहोगे, आ गए बस हो गया! देखो शक्ति जग गई!' एक मुसलमान युवक मेरे पास साधना करता था। बड़ी गहन आकांक्षा से साधना में लगा था। बड़ी अटूट उसकी निष्ठा थी। वह एक दिन मेरे पास आया और उसने कहा कि घटना घट गई; मालूम होता है, आत्मज्ञान हो गया। मैंने कहा, 'हुआ क्या?' तो उसने कहा, 'मैं एक बस में बैठा था। और ऐसे बस मझी पहाड़ी के किनारे तो मुझे लगा कि मेरे सामने जो आदमी बैठा है वह कहीं गिर तो न जाएगा ! और जैसे ही मुझे लगा कि वह गिर गया। तो मैंने सोचा कि कहीं मेरे विचार ने तो इसको नहीं गिरा दिया। पर मैंने कहा, संयोग की बात भी हो सकती है। तो मैंने एक दूसरी दफे, जब मझी बस, तो मैंने एक दूसरे आदमी पर ध्यान किया और सोचा कि यह आदमी गिरेगा ! वह आदमी गिर गया ! तब मैं थोड़ा घबड़ाया कि यह मामला क्या है! पर फिर भी मैंने सोचा एक परीक्षा और कर लेनी चाहिए। तीसरी दफे जब बस मझी तो एक बहुत मोटे आदमी पर जिसके गिरने की संभावना ही नहीं थी, जो ऐसा फंसा बैठा था कि सीट ही छोटी पड़ रही थी, बस पूरी भी उलट जाए तो वह शायद न उलटे - उसको सोचा कि यह गिर जाए, वह गिर गया! तो फिर बोला, फिर तो मुझे एकदम घबडाहट हो गई। घबड़ाहट भी हुई और आनंद भी आया । मैंने कहा कि यह तो मालूम होता है शक्ति हाथ में आ रही है। अब वस्तुतः उसे घट रहा था, फिर भी मुझे कहना पड़ा, यह पागलपन है। यह एकाग्रता की क्षमता है। अगर तुम ध्यान करते-करते बहुत एकाग्र हो जाओ और उस एकाग्रता में कोई विचार तुम सोचो, वह तत्क्षण घट जाएगा। इसलिए समस्त योगशास्त्रों ने कहा है, इसके पहले कि तुम ध्यान की एकाग्रता में उतरो, तुम्हें शुभ विचारों से भर जाना चाहिए। क्योंकि अगर ध्यान की एकाग्रता के बाद अशुभ विचार तुम्हारे भीतर चलते रहे तो उनके परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। इसलिए पतंजलि ने इसके पहले कि धारणा, ध्यान, समाधि साधो - यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, इन सबके साधने की बात कही। इतने परिशुद्ध हो जाओ कि जब ध्यान की ऊर्जा उठे तो तुम्हारे पास गलत विचार तो हो ही नहीं । इसलिए महावीर ने कहा, ध्यान के पहले अहिंसा का भाव गहरा कर लो। बुद्ध ने कहा, ध्यान के पहले करुणा का भाव गहरा कर लो। बुद्ध ने तो यह भी कहा कि हर ध्यान के बाद, उठने के पहले ध्यान से, सारे जगत के प्रति करुणा का फैलाव करना। हर ध्यान को करुणा पर पूरा करना, करुणा से शुरू करना; अन्यथा खतरा है, क्योंकि अगर जरा भी गलत विचार घूम जाए ध्यान की स्थिति में तो वह विचार परिणामकारी हो जाएगा। उस विचार में एक बल आ जाता है। वह विचार दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर जाएगा। शक्ति जागनी शुरू होती है, उसे भी गुरु को रोकना पड़ता है। कल्पनाएं सत्य मालूम होने लगती हैं, उसे भी गुरु को रोकना पड़ता है। भ्रांति जन्मों-जन्मों की है। उस भ्रांति का बड़ा फैलाव है। ऐसा ही समझो कि इस बगीचे में
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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