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________________ खूब | जीवन बड़ी प्रफुल्लता से भर जाएगा। सदगुरु के पास होना एक अपूर्व अनुभव है। तो फिर सत्य को पहुंच जाना तो कैसा अपूर्व सोच लो! सदगुरु के पास होना भी अपूर्व अनुभव है । जिसे सत्य मिला है उसके पास होना भी अपूर्व अनुभव है। बांसों –बांस उछलती लहरें देख लिया है चांद सलोना लेकिन हाथ रह गया बौना । रह-रहकर कर मलती लहरें बांसों - बांस उछलती लहरें ! तुम्हारा हृदय उछलने लगेगा, तरंगें लेने लगेगा : चांद दिखाई पड़ने लगा ! लेकिन उपदेश को ही तुम सब मत समझ लेना - शुरुआत है, प्रारंभ है। चांद तक चलना है, चांद तक पहुंचना है। और तुम अपने ही पैरों से पहुंच पाओगे। कोई किसी और के पैरों से कभी नहीं पहुंचा है। अप्प दीपो भव अपने दीए बनो! तीसरा प्रश्न : मैं आंसू का एक झरना हूं? लेकिन हूं कंधा हुआ अरसे से कैसे चट्टान हटे बुद्धि की, कैसे मैं फूट कर बह निकलूं? पूछा है 'योग प्रीतम' ने। प्रीतम कवि हैं। और कवि के लिए सदा एक कठिनाई है। और कठिनाई यह है कि कवि का अस्तित्व तो होता है हृदय का, अभिव्यक्ति होती है बुद्धि की। तो कवि के भीतर एक द्वंद्व होता है, एक सतत द्वंद्व है। जो उसे कहना है, वह शब्दों के पार है। और जो उसे कह का माध्यम है, वे शब्द हैं। जो वह उडेलना चाहता है, वह हृदय है - और उडेलना पड़ता है बुद्धि की भाषा में। सब कट-पिट जाता है, सब खंड-खंड हो जाता है, छितर जाता है। इसलिए कवि सदा पीड़ा में रहता है। कवि कभी तृप्त नहीं हो पाता। और जो कवि तृप्त हो जाए वह बहुत छोटा कवि है; तुकबंद कहना चाहिए, कवि नहीं। जितना बड़ा कवि हो उतनी अतृप्ति होती है। तडफता है कुछ प्रगट होने को । और जब उसे प्रगट करना चाहो तब मिलते हैं छोटे -छोटे शब्द, जिनमें वह समाता नहीं। बड़ा आकाश है हृदय का और शब्दों के भीतर जगह नहीं है, स्थान नहीं, अवकाश नहीं। तो कह-कह कर भी कवि कह नहीं पाता। जीवन भर गा-गा कर भी गा नहीं पाता। जिसे गाने
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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