________________
.
गल-गल कर बहे जा रहे नभ में भूधर! गांवों पर गांव धवल जंगल कासों के उगते ये तरु अनंत किसकी सांसों के!
एक दूसरी धरती बना हुआ है अंबर · दल के दल तैर रहे मेघ मगन भू पर!
उड़ता जाता हूं मैं मेघों के ऊपर! एक अजब लोक खुला है मेरे आगे!
कोई सपना विराट सोये में जागे! जागो! सपना खूब देखा, अब जागो! बस जागना कुंजी है। कुछ और करना नहीं-न कोई साधना, न कोई योग, न आसन-बस जागना!
हरि ॐ तत्सत्!
जैसी मति वैसी गति
81