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________________ • आनंद परमानंदः स बोधस्त्वं सुखं चर। इस थोड़े-से बोध को समझ लो, पकड़ लो, पहचान लो-फिर विचरण करो सुख में। यह अस्तित्व परम आनंद है। इस अस्तित्व ने दुख जाना नहीं। दुख तुम्हारा निर्मित किया हुआ है। कठिन है समझना यह बात, क्योंकि हम इतने दुख में जी रहे हैं, हम कैसे माने कि दुख नहीं है। वह जो रस्सी को देखकर भाग गया है, वह भी नहीं मानता की सर्प नहीं है। वह जो हाथ रखकर छाती र पड़ा है और सोचता है पहाड़ गिर गया, वह भी उस क्षण में तो नहीं मान सकता कि पहाड नहीं गिर गया है। वैसी ही हमारी दशा है। क्या करें? थोड़े दृश्य से द्रष्टा की तरफ चलें! देखें सब, लेकिन देखने वाले को न भूलें। सुनें सब, सुनने वाले को न भूलें। करें सब, लेकिन स्मरण रखें कि कर्ता नहीं हैं। बुद्ध कहते थे: चलो राह पर और स्मरण रखो कि भीतर कोई चल नहीं रहा है। भीतर सब अचल ऐसा ही है भी। गाड़ी के चाक को चलते देखा है? कील तो ठहरी रहती है, चाक चलता जाता है। ऐसे ही जीवन का चाक चलता है, कील तो ठहरी हुई है। कील हो तुम।। ___'मुक्ति का अभिमानी मुक्त है और बद्ध का अभिमानी बद्ध है। क्योंकि इस संसार में यह लोकोक्ति सच है कि जैसी मति वैसी गति।' यह सूत्र मूल्यवान है। 'मुक्ति का अभिमानी मुक्त है।' जिसने जान लिया कि मैं मुक्त हूं वह मुक्त है। मुक्ति के लिए कुछ और करना नहीं; इतना जानना . ही है कि मैं मुक्त हूं! तुम्हारे करने से मुक्ति न आयेगी, तुम्हारे जानने से मुक्ति आयेगी। मुक्ति कृत्य का परिणाम नहीं, ज्ञान का फल है। 'मुक्ति का अभिमानी मुक्त है, और बद्ध का अभिमानी बद्ध है।' जो सोचता है मैं बंधा हूं, वह बंधा है। जो सोचता है मैं मुक्त हूं, वह मुक्त है। तुम जरा करके भी देखो! एक चौबीस घंटे ऐसा सोचकर देखो कि चलो चौबीस घंटे यही सही : मुक्त हूं! चौबीस घंटे मुक्त रहकर देख लो। तुम बड़े चकित होओगे, तुम्हें खुद ही भरोसा न आयेगा। कि अगर तुम सोच लो मुक्त हो तो कोई नहीं बांधने वाला है। तो तुम मुक्त हो। तुम सोच लो कि बंधा हूं तो हर चीज बांधने वाली है। मेरे एक मित्र थे, मेरे साथ प्रोफेसर थे। होली के दिन थे, भांग पी ली। रास्ते पर शोरगुल मचा दिया। हुल्लड़ कर दी। बड़े सीधे आदमी थे। सीधे आदमी के साथ खतरा है। उसके भीतर काफी दबा पड़ा रहता है। उपद्रवी नहीं थे। नाम भी उनका भोलाराम था। भोले-भाले आदमी थे। भोले-भाले आदमी के साथ एक खतरा है : भांग वगैरह से बचना चाहिए। क्योंकि वह भोला-भालापन जो ऊपर-ऊपर है, भांग ने तो डुबा दिया, भीतर जो दबा पड़ा था, जिंदगी भर में जो नहीं किया था, वह सब निकल आया। वे सड़क पर गये, शोरगुल मचाया, उपद्रव कर दिया, किसी स्त्री के साथ छेड़-छाड़ 76 अष्टावक्र: महागीता भाग-1 |
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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