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________________ साधारणतः अष्टावक्र के ऊपर जिन्होंने भी कुछ लिखा है, उन्होंने दूसरा ही अर्थ किया है। इसलिए वह दूसरा अर्थ भी समझ लेना जरूरी है। वह दूसरा अर्थ भी ठीक है। दोनों अर्थ साथ-साथ ठीक हैं। 'तेरा बंधन तो यही है कि तू अपने को छोड़, दूसरे को द्रष्टा देखता है।' तुम मुझे सुन रहे हो, तुम सोचते होः कान सुन रहा है। तुम मुझे देख रहे हो, तुम सोचते हो आंख देख रही है। आंख क्या देखेगी? आंख को द्रष्टा समझ रहे हो तो भूल हो गयी। देखने वाला तो आंख के पीछे है। सुनने वाला तो कान के पीछे है। तुम मेरे हाथ को छुओ, तो तुम सोचोगे: तुम्हारे हाथ ने मेरे हाथ को छुआ। गलती हो रही है। छूने वाला तो हाथ के भीतर छिपा है, हाथ क्या छुएगा? कल मर जाओगे, लाश पड़ी रह जायेगी लोग हाथ पकड़े बैठे रहेंगे, कछ भी न छएगा। लाश पड़ी रह जायेगी, आंख खुली पड़ी रहेगी, सब दिखायी पड़ेगा और कुछ भी दिखायी न पड़ेगा। लाश पड़ी रह जायेगी, संगीत होगा, बैंड-बाजे बजेंगे, कान पर चोट भी लगेगी, झंकार भी आयेगी; लेकिन कुछ भी सुनायी न पड़ेगा। जिसे सुनायी पड़ता था, जिसे दिखायी पड़ता था, जिसे स्पर्श होता था, स्वाद होता था-वह जा चुका। ___ इंद्रियां नहीं अनुभव लातीं; इंद्रियों के पीछे छिपा हुआ कोई...। तो दूसरा अर्थ इस सूत्र का है कि तुम अपने को ही द्रष्टा जानना, शरीर को मत जान लेना; आंख को, कान को, इंद्रियों को मत जान लेना। भीतर की चेतना को ही द्रष्टा जानना। - 'मैं कर्ता हूं', ऐसे अहंकार-रूपी अत्यंत काले सर्प से दंशित हुआ तू, 'मैं कर्ता नहीं हूं', ऐसे विश्वास-रूपी अमृत को पीकर सुखी हो।' 'अहं कर्ता इति–मैं कर्ता हूं, ऐसे अहंकार-रूपी अत्यंत काले सर्प से दंशित हुआ तू...।' हमारी मान्यता ही सब कुछ है। हम मान्यता के सपने में पड़े हैं। हम अपने को जो मान लेते हैं, वही हो जाते हैं। यह बड़ी विचार की बात है। यह पूरब के अनुभव का सार-निचोड़ है। हमने जो मान लिया है अपने को, वही हम हो जाते हैं। ___तुमने अगर कभी किसी सम्मोहनविद को, हिप्नोटिस्ट को प्रयोग करते देखा हो, तो तुम चौंके होओगे। अगर वह किसी व्यक्ति को सम्मोहित करके कह देता है, पुरुष को, कि तुम स्त्री हो और फिर कहता है, उठो चलो, तो वह आदमी स्त्री की तरह चलने लगता है। बहुत कठिन है स्त्री की तरह चलना। उसके लिए खास तरह का शरीर का ढांचा चाहिए। स्त्री की तरह चलने के लिए गर्भ की खाली जगह चाहिए पेट में, अन्यथा कोई स्त्री की तरह चल नहीं सकता। या बहुत अभ्यास करे तो चल सकता है। लेकिन कोई सम्मोहनविद किसी को सुला देता है बेहोशी में और कहता है, 'उठो, तुम स्त्री हो, पुरुष नहीं, चलो!' वह स्त्री की तरह चलने लगता है। .. ___वह उसे प्याज पकड़ा देता है और कहता है, 'यह सेब है, नाश्ता कर लो', वह प्याज का नाश्ता कर लेता है। और उससे पूछो कैसा स्वाद, वह कहता है बड़ा स्वादिष्ट! उसे पता भी नहीं चलता कि यह प्याज है। उसे बास भी नहीं आती। सम्मोहनविदों ने अनुभव किया है और अब तो यह वैज्ञानिक तथ्य है, इस पर बहुत प्रयोग हुए हैं : सम्मोहन में मूर्छित व्यक्ति के हाथ में उठाकर एक साधारण कंकड़ रख दो और कह दो अंगारा रख दिया है, वह झटककर फेंक देता है, चीख मारता है कि जल गया! इतने तक भी बात होती तो wwws जैसी मति वैसी गति 65 |
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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