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साथ हवा के गा गए
मैंने उठकर
खोल दिया वातायन और दुबारा चौंका
वह सन्नाटा नहीं
झरोखे के बाहर
ईश्वर गाता था । हवा कहीं से उठी, बही
ऊपर ही ऊपर चली गई पथ सोया ही रहा।
तुम पथ की तरह मत सोए रहना, पत्थर की तरह मत सोए रहना !
किनारे के क्षुप चौंके नहीं
न कांपी डाल
न पत्ती कोई दरकी
अंग लगी लघु ओस
बूंद भी एक न ढरकी ।
यह जो हवा मैं तुम्हारे आसपास उठा रहा हूं, इसके लिए जरा तुम ऊंचे उठो। अगर तुम नीचे ही पड़े रहे तो ओस की एक बूंद भी तुमसे न ढरकेगी, एक आंसू भी न बहेगा। तुम ऐसे ही अछूते पड़े रह जाओगे।
वनखंडी में सधे खड़े, पर अपनी ऊंचाई में खोए-से
चीड़ जाग कर सिहर उठे
सनसना गए ।
जरा ऊंचे उठो। मैं जहां की खबर लाया हूं, वहां की खबर लेने के लिए चीड़ बनो। थोड़े. सिर को उठाओ। थोड़े सधो ।
वनखंडी में सधे खड़े, पर
अपनी ऊंचाई में खोए-से चीड़ जाग कर सिहर उठे
सनसना गए।
एक स्वर नाम वही अनजाना साथ हवा के गा गए ।
मेरे साथ गुनगुना लो थोड़ा । जिस एक की मैं चर्चा कर रहा हूं, उस एक की गुनगुनाहट को तुममें भी गूंज जाने दो।
एक स्वर नाम वही अनजाना
उद्देश्य—उसे जो भावे
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