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________________ बनाया, दान दिया-सब मन के हैं। न कर्ताऽसि न भोक्ताऽसि मुक्त एवासि सर्वदा। 'तू तो सदा मुक्त है। तू तो सर्वदा मुक्त है।' मुक्ति कोई घटना नहीं है जो हमें घटानी है। मुक्ति घट चुकी है हमारे होने में! मुक्ति से बना है यह अस्तित्व। इसका रो-रोआं, रंच-रंच मुक्ति से निर्मित है। मुक्ति है धातु, जिससे बना है सारा अस्तित्व। स्वतंत्रता स्वभाव है। यह उदघोषणा, बस समझी कि क्रांति घट जाती है। समझने के अतिरिक्त कुछ करना नहीं है। यह बात खयाल में उतर जाये, तुम सुन लो इसे मन भर कर, बस! तो आज इतना ही कहना चाहूंगा : अष्टावक्र को समझने की चेष्टा भर करना। अष्टावक्र में 'करने' का कोई इंतजाम नहीं है। इसलिए तुम यह मत सोचना कि अब कोई तरकीब निकलेगी जो हम करेंगे। अष्टावक्र कुछ करने को कहते ही नहीं। तुम विश्राम से सुन लो। करने से कुछ होने ही वाला नहीं है। इसलिए तुम कापी वगैरह, नोटबुक ले कर मत आना कि लिख लेंगे, कुछ आयेगा सूत्र तो नोट कर लेंगे, करके देख लेंगे। करने का यहां कुछ काम ही नहीं है। इसलिए तुम भविष्य की फिक्र छोड़ कर सुनना। तुम सिर्फ सुन लेना। तुम सिर्फ मेरे पास बैठ कर शांत भाव से सुन लेना, विश्राम में सुन लेना। सुनते-सुनते तुम मुक्त हो जा सकते हो। __ इसलिए महावीर ने कहा है कि श्रावक मुक्त हो सकता है सिर्फ सुनते-सुनते! श्रावक का अर्थ होता है जो सुनते-सुनते मुक्त हो जाये। साधु का तो अर्थ ही इतना है कि जो सुन-सुन कर मुक्त न हो सका, थोड़ा कमजोर बुद्धि का है। कुछ करना पड़ा। सिर्फ कोड़े की छाया काफी न थी। घोड़ा जरा कुजात है। कोड़ा फटकारा, तब थोड़ा चला; या मारा तो थोड़ा चला। छाया काफी है। तुम सुन लेना, कोड़े की छाया दिखाई पड़ जायेगी। तो अष्टावक्र के साथ एक बात स्मरण रखना ः कुछ करने को नहीं है। इसलिए तुम आनंद-भाव से सुन सकते हो। इसमें से कुछ निकालना नहीं है कि फिर करके देखेंगे। जो घटेगा वह सुनने में घटेगा। सम्यक श्रवण सूत्र है। अधुनैव सुखी शांतः बंधमुक्तो भविष्यसि। __ अभी हो जा मुक्त! इसी क्षण हो जा मुक्त! कोई रोक नहीं रहा। कोई बाधा नहीं है। हिलने की भी जरूरत नहीं है। जहां है, वहीं हो जा मुक्त। क्योंकि मुक्त तू है ही। जाग और हो जा मुक्त! असंगोऽसि निराकारो विश्वसाक्षी सुखी भव। हो जा सुखी! एक पल की भी देर करने की कोई जरूरत नहीं है। छलांग है, क्वांटम छलांग! सीढ़ियां नहीं हैं अष्टावक्र में। क्रमिक विकास नहीं है; सडन, इसी क्षण हो सकता है! हरि ॐ तत्सत्! 24 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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