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________________ यह अभय का द्वार धीरज अमिट साहस यह परम उस सत्य की पहली झलक है और अखिल विराट को पहचानने की यह हृदय की जागरित पहली ललक है और मेरा कुछ नहीं सत्यानुभूति मैं, यह देह, तेरा और मेरा आज तक जो घेर कर मुझ को खड़ी थी यह उसी काली निशा का है सवेरा। यह परम उस सत्य की पहली झलक है! साक्षी का थोड़ा सा अनुभव, सत्य की पहली झलक है। यह परम उस सत्य की पहली झलक है और अखिल विराट को पहचानने की यह हृदय की जागरित पहली ललक है थोड़ा-सा दर्शन, थोड़ी-सी दृष्टि, थोड़े-से साक्षी बनो। थोड़े-से देखो-जो हो रहा। उसमें कुछ भी भेद करने की आकांक्षा न करो। न कहो, ऐसा हो। न कहो, वैसा हो। तुम मांगो मत कुछ। तुम चाहो मत कुछ। तुम सिर्फ देखो-जैसा है। कृष्णमूर्ति कहते हैं : दैट ह्विच इज। जैसा है, उसको वैसा . ही देखो; तुम अन्यथा न करना चाहो। और अखिल विराट को पहचानने की यह हृदय की जागरित पहली ललक है और मेरा कुछ नहीं सत्यानुभूति मैं, यह देह, तेरा और मेरा आज तक जो घेर कर मुझ को खड़ी थी यह उसी काली निशा का है सवेरा। साक्षी है सवेरा! कर्ता और भोक्ता है अंधेरी रात्रि! जब तक तुम्हें लगता है मैं कर्ता-भोक्ता, तब तक तुम अंधेरे में भटकोगे। जिस क्षण जागे, जिस क्षण जगाया अपने को, जिस क्षण सम्हाली भीतर की ज्योति, साक्षी को पुकारा-उसी क्षण क्रांति! उसी क्षण सवेरा! हरि ॐ तत्सत्! जब जागो तभी सवेरा 345
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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