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________________ आशा से भरा होता, कि यह विध्वंस निर्माण के मार्ग पर है; कि यह मिटाना बनाने की तैयारी है। ___ जैसे हम एक पुराने मकान को गिराते हैं तो भी हम प्रफुल्लित होते हैं, क्योंकि नए मकान को बनाने के लिए जगह तैयार कर रहे हैं। जब तुम पुराने मकान को गिराने लगते हो, तो तुम रोते थोड़े ही हो! तुम प्रसन्न होते हो कि चलो घड़ी आ गई है, नए बनाने की सुविधा हो गई। कोई दूसरा तुम्हारे मकान को आ कर तोड़ने लगे तो तुम प्रसन्न न होओगे, क्योंकि तुम तब सिर्फ विध्वंस ही देखोगे। दोनों हालतों में घटना तो एक ही है-मकान तोड़ा जा रहा है। बनने वाली बात तो भविष्य की है—बने न बने। कल आए न आए, कल सूरज निकले न निकले-किसको पता है? आज संभावना दिखती है, कल संभावना न रह जाए-किसको पता है? टूटने की बात तो दोनों में एक-सी है; लेकिन एक में तुम दुखी हो, एक में तुम प्रसन्न हो; एक में तुम्हारा हृदय उत्साह से भरा है, एक में तुम मुर्दे की तरह खड़े हो। सब निर्भर करता है इस बात पर कि विध्वंस सृजन के लिए हो रहा है या सिर्फ विध्वंस के लिए हो रहा है। ____ गुरु के पास बहुत कुछ टूटेगा; बहुत कुछ क्या, सब कुछ टूटेगा। तुम फिर से बिखेर कर बनाए जाओगे, तुम्हें खंड-खंड किया जाएगा, ताकि फिर से तुम्हारे संगीत को जमाया जा सके। तुम्हारी वीणा अस्तव्यस्त है, तार उल्टे-सीधे कसे हैं। इसलिए जहां संगीत पैदा होना चाहिए, वहां केवल संताप पैदा हो रहा है; जहां आनंद का जन्म हो, वहां सिर्फ नर्क निर्मित हो रहा है। तुम्हारी दशा अति विकृत है। सोने में बहुत मिट्टी मिल गई है, बहुत कूड़ा-कर्कट मिल गया है। जन्मों-जन्मों तक सोना मिट्टी, कूड़ा-कर्कट में पड़ा रहा है। आग से गुजारना पड़ेगा। आग में वही जल जाएगा, जो तुम नहीं हो; वही बचेगा, जो तुम हो-शुद्ध कुंदन, शुद्ध स्वर्ण हो कर तुम निकलोगे। लेकिन आग से गुजरना पीड़ा तो है ही। जख्मे-जिगर जो मुंदमिल गम में नहीं हुआ, न हो दर्द की इंतिहा को तू शौक की इब्तदा समझ। घाव एकदम से न भरे, न भरे...। जख्मे-जिगर जो मुंदमिल गम में नहीं हुआ, न हो जख्म एकदम से न भरे, न भरे। घाव तत्क्षण भर भी नहीं सकता। दर्द की इंतिहा को तू शौक की इब्तदा समझ। और पीड़ा की चरम सीमा भी आ जाए, तो तू यह याद रखना कि पीड़ा की चरम सीमा प्रेम की शुरुआत है। दर्द की इंतिहा को तू शौक की इब्तदा समझ। साधारणतः हम सब सुख के आकांक्षी हैं, दुख से भयभीत, सुख के लिए आतुर। मिलता दुख ही है, आतुरता आतुरता ही रह जाती है, प्यास प्यास ही रह जाती है; तृप्ति होती कहां? सुख तो केवल उनको मिलता है जो दुख से गुजरने के लिए राजी हो जाते हैं। इस दुख से गुजरने का नाम ही तपश्चर्या गुरु के पास होना, मैंने कहा, मृत्यु के पास होना है-तपश्चर्या है। तुम्हें निखारा जाएगा। तुम्हें उघाड़ा जाएगा। तुम्हें मिटाया जाएगा। तुम्हें पोंछा जाएगा। तुम्हारे भीतर छुपी हुई संभावनाओं को प्रभु प्रसाद-परिपूर्ण प्रयत्न से 311
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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