SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु के पास कैसी ही अंधेरी रात हो, वह जो बिजली चमकती है कभी-कभी, उसको भी काफी समझना । अंधेरी रात में जब बिजली चमकती है, उसे सौभाग्य समझना । शायद बिजली चमकने के लिए अंधेरी रात चाहिए। दिन में तो बिजली चमकने का मजा नहीं। शायद गुलाब की झाड़ी पर फूलों लिए कांटे चाहिए ही । तो गुरु के पास बहुत-सी अंधेरी रातें होंगी, उनकी गणना मत करना; कभी-कभी बिजली चमक जाए, उसे हृदय में संजो कर रख लेना । बहुत कांटे गड़ेंगे, उनका हिसाब मत रखना; कभी-कभी फूल गंध आ जाए तो नाच लेना, गुनगुना लेना गीत धन्यवाद का । गाहे-गाहे अंधियारे में बिजली चमके, गाहे - गाहे हंस लें, गा लें । शिष्य का अर्थ है, जिसने किसी में परमात्मा को देखना शुरू किया। यह बड़ी असंभव बात है। इसलिए दूसरों को तो बड़ी कठिनाई होती है। तुमने देखा, तुम अगर किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गए, तो प्रेम में पड़ते ही वह स्त्री इस जगत की सबसे सुंदर स्त्री हो जाती है। फिर क्लियोपैत्रा फीकी, फिर मर्लिन मनरो फीकी, फिर सारी दुनिया की सुंदरतम स्त्रियां उसके मुकाबले कुछ भी नहीं । अतीत फीका, भविष्य फीका, बस एक स्त्री केंद्र हो जाती । तुम्हारा सौंदर्य उसके भीतर दिव्यता को उभार देता, प्रगट कर देता । और यह केवल प्रेम की कल्पना नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति इतना ही सुंदर है - प्रेमी देख पाता, सभी देख नहीं पाते। जब किसी व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में गुरु का भाव उदय होता है, तो तुम्हारे पास एक नई देखने की दृष्टि खुलती है। वह व्यक्ति तुम्हारे लिए परमात्मा हो गया। इसे तुम दूसरों के सामने सिद्ध न कर पाओगे, सिद्ध करना भी मत । यह कोई सिद्ध करने की बात भी नहीं है । जैसे तुम प्रेम नहीं पूछते कि सिद्ध करो कि तुम्हारी जो प्रेयसी है, वही दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री है, तुम इस तरह के वक्तव्य क्यों देते हो? तुम क्यों कहते हो कि यही स्त्री दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री है ? इसे सिद्ध करो, प्रमाण जुटाओ - वैज्ञानिक, तार्किक । तुम उससे नहीं कहते। तुम कहते हो, पागल है, प्रेम में पागल है। शिष्य भी प्रेम में पागल है । और किसी स्त्री का या किसी पुरुष का सौंदर्य तो क्षणभंगुर है। शिष्य एक ऐसे प्रेम में पागल है जो क्षणभंगुर नहीं है; एक ऐसी अनुभूति से आंदोलित हुआ है, जो शाश्वत है, जो समय की धारा से प्रभावित नहीं होती। समय आता है, जाता है। एक ऐसी श्रद्धा का जन्म हुआ है शिष्य में, जो रूपांतरित नहीं होती, जो थिर है। श्रद्धा, अगर है तो कभी पतित नहीं होती, और अगर पतित होती है तो इतना ही जानना कि थी ही नहीं; तुमने समझा था कि है, लेकिन थी नहीं; भ्रांत रही होगी, प्रतीति रही होगी, आभास रहा होगा। किसी व्यक्ति में परमात्मा की प्रतीति होने लगे, यह बहुत असंभव घटना है, क्योंकि हमारा अहंकार बाधा डालता है। हमारा अहंकार यह तो मानने को राजी होता ही नहीं कि हमसे कोई श्रेष्ठतर हो सकता है। जैसे ही तुम यह जानने और मानने में उतरने लगते हो कि हमसे कोई श्रेष्ठतर है, हमसे कोई महानतर है, हमसे कोई विभु और प्रभु है, हमसे कोई ऊपर है— वैसे ही तुम्हारा अहंकार विसर्जित होने लगता है । और जिस दिन तुम्हारा अहंकार विसर्जित हो जाता है, एक दिन तुमने जिस परमात्मा प्रभु प्रसाद - परिपूर्ण प्रयत्न से 309
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy