SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पहला प्रश्न : मेरे इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दें, ऐसी प्रार्थना है। गुरु - दर्शन को कैसे आऊं ? जब शिष्य गुरु के पास जाए तो कैसे जाए ? गुरु के पास शिष्य किस तरह रहे, क्या-क्या करे और क्या-क्या न करे ? छा है 'विष्णु चैतन्य' ने। शिष्य का अर्थ होता है, जिसे सीखने | की दुष्पूर आकांक्षा उत्पन्न हुई है; जिसके भीतर सीखने की प्यास जगी है। सीखने की प्यास साधारण नहीं होती; सिखाने का मन बड़ा साधारण है। सीखने की प्यास बड़ी असाधारण है। गुरु तो कोई भी होना चाहता है, शिष्य होना दुर्लभ है। जो तुम नहीं जानते, वह भी तुम दावा करते हो जानने का, क्योंकि जानने के दावे में अहंकार की तृप्ति है। जिन बातों का तुम्हें कोई भी पता नहीं है, उनका भी तुम उत्तर देते हो; क्योंकि यह तुम कैसे मानो कि उत्तर, और तुम्हें पता नहीं! तुम ऐसी सलाहें देते हो, जिन्हें कोई माने तो गड्ढे में गिरेगा, क्योंकि तुम किसी अनुभव से सलाह नहीं दे रहे हो। तुम तो सलाह देने का मजा ले रहे हो। देख लोगों को, सलाह देने में कैसा मजा लेते हैं! फंस भर जाओ उनके चंगुल में, और हर कोई सलाह देने को उत्सुक है। वह तो अच्छा है कि लोग सलाह लेते नहीं। दुनिया में सबसे ज्यादा दी जानी वाली चीज सलाह है, और सबसे कम ली जाने वाली चीज भी सलाह है। कौन सुनता है ? कौन लेता है ? अच्छा है कि लोग लेते नहीं अन्यथा लोग पागल हो जायें । सलाह देने वाले इतने हैं, मार्गदर्शक इतने हैं ! पू सीखने की इच्छा अति दुर्लभ है। क्योंकि सीखने की इच्छा का अर्थ हुआ— यह स्वीकार कि मुझे मालूम नहीं; यह स्वीकार कि मैं अज्ञानी हूं; यह स्वीकार कि मैं समर्पित होने को तैयार हूं, कि मैं भिक्षा की झोली फैलाने को राजी हूं। बेशर्म भिक्षा की झोली फैलाने की हिम्मत से कोई शिष्य बनता है। लाग-लपेट, संकोच, शर्म, सब छोड़ कर कोई शिष्य बनता है । शिष्य बनने का अर्थ है, कि मेरा सारा अतीत व्यर्थ था, गलत था- - इसे मैं स्वीकार करता हूं । कल एक इटालियन युवती ने संन्यास लिया, वह केवल भूली-भटकी दो-चार दिन के लिये यहां आ गई। घूमती रही पूरे देश में गई बहुत आश्रमों में, बहुत सत्संगों में; भूली- भटकी, किसी ने बता दिया, तो यहां आ गई। आज ही उसे वापस लौटना है। वह कल बड़े हृदय से रोने लगी। और उसने कहा कि मुझे बड़ी अड़चन में डाल दिया। पूछा मैंने, क्या अड़चन है? उसने कहा, अड़चन यह है कि
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy