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________________ बोली, आप भी गजब करते हैं! शर्मा जी के घर छह बजे चलना है और आप बैठ कर गप्पे लगा रहे ___गुरु का कुल काम इतना है कि जो तुम नहीं कर पा रहे हो, वह तुम्हें चौंका दे, वह कह दे आ कर कि छह बजे शर्मा जी के घर चलना है, और तुम बैठ कर गप्पें लगा रहे हो! ____ गुरु तुम्हें कहीं ले जाता नहीं; सिर्फ जगाता है; सिर्फ याद दिलाता है कि छोड़ो ये गप्पें, समय और मत गंवाओ, ऐसे भी बहत गंवा चके हो। अष्टावक्र की मौजूदगी में याद आ गई जनक को, कि हो गईं गप्पें सब व्यर्थ। ये सब गप्पें हैं कि कोई सम्राट कि कोई भिखारी। ये सब गप्पें हैं कि कोई धनिक कि कोई अमीर। ये सब गप्पें हैं कि कोई सफल कि कोई असफल। ये बस गप्पें हैं। ये सब कल्पनायें हैं। हम एक-दूसरे को सहारा दिये हैं, और इन कल्पनाओं में हम जीते चले जाते हैं। ये हमारे रचे हुए नाटक हैं, ये हमारे खेल हैं। ___ अगर किसी को सफल होना है, तो किसी को असफल होना पड़ेगा—इसलिए खेल में तो दोनों की जरूरत पड़ती है। अगर सभी सफल होना चाहें, तो खेल बंद हो जाता है। सभी असफल हो जायें, तो खेल बंद हो जाता है। तो हमने एक खेल रच लिया है, उसमें कोई असफल होता है, कोई सफल होता है; कोई बुद्धिमान, कोई बुद्ध। हमने एक खेल रच लिया है। एक कल्पना का जाल है। हमने एक बस्ती बसा ली है। इतना ही तुमसे कहना चाहता हूं: खूब समय हो गया, अब उठो! दर्पण तुम्हारे सामने है, थोड़ा अपने चेहरे को देखो! तुम्हें पकड़ कर नदी के किनारे ले आया हूं, जरा झांको, और सिंह-गर्जना किसी भी क्षण हो सकती है। हरि ॐ तत्सत्! 296 अष्टावक्र: महागीता भाग-1 I
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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