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________________ उसकी आंखों में, उसके इशारों में तुम्हारे भीतर सोया हुआ सिंह जाग जाये। ___ औषधि कोई भी नहीं, उपाय कोई भी नहीं, विधि कोई भी नहीं। न तस्य भेषजम् अन्यत् अस्ति। न कोई औषधि है, क्योंकि यह सब दृश्य झूठ है। उस सिंह का भेड़ होना झूठ था। वह सारा दृश्य झूठ था। माना था, इसलिए सच मालूम हो रहा था। जिस क्षण जाना, उसी क्षण झूठ हो गया। वह स्वप्नवत था। _ 'मैं एक अद्वैत शुद्ध चैतन्य-रस हूं।' सुनो इस शब्द को : 'मैं एक अद्वैत शुद्ध चैतन्य-रस हूं।' अहो द्वैतमूलम् यत् दुःखम् -सभी दुख द्वैत से पैदा होते हैं। न तस्य भेषजम् अन्यत् अस्ति -इस दुख से छुटकारे के लिए कोई औषधि नहीं है। सतत् सर्वम् दृश्यम् मृषा -क्योंकि सब झूठ है, सब स्वप्नवत है। अहं एकः अमलः चिद्रसः -मैं एक शुद्ध चैतन्य-रस हूं। यह गर्जना तुम्हारे भीतर उठेगी। इसे तुम पुनरुक्त मत करना। तुम सिर्फ समझना। तम सिर्फ आंख खोल कर देखना, कान खोल कर सुनना।। ___ अष्टावक्र की गीता में कोई विधि नहीं है-यही उसकी महिमा है। उसमें कोई उपाय नहीं बताया है कि कैसे परमात्मा तक पहुंचो। उसमें तो इतना ही कहा है कि तुमने कभी परमात्मा को खोया नहीं। बस जागो! खोलो आंख, और पहचानो अपने स्वरूप को! ___ 'मैं शुद्ध बोध हूं। मुझसे अज्ञान के कारण उपाधि की कल्पना की गई है। इस प्रकार नित्य विचार करते हुए मैं निर्विकल्प में स्थित हूं।' जिस क्षण तुम्हें दिखाई पड़ना शुरू हो जायेगा कि स्थिति क्या है, उस क्षण तुम छोड़ोगे नहीं, कुछ त्यागने को न बचेगा, सारा स्वप्न खो जायेगा, तुम सिर्फ एक अहोभाव से भरे रह जाओगे। अगर तुमने सोच-विचार करके, तर्क से, चिंतन-मनन से अपने को राजी कर लिया कि नहीं, यह सब स्वप्न है तो इससे कुछ हल न होगा। यह तुम्हारी बौद्धिक धारणा नहीं होनी चाहिए, यह तुम्हारा अस्तित्वगत अनुभव होना चाहिए। ___ मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन से उसकी एक पड़ोसी महिला ने कहा, पांच वर्ष पूर्व मेरा पति आलू खरीदने गया था, परंतु आज तक लौटा नहीं, बताइये मैं क्या करूं? मुल्ला ने खूब सोचा, सिर मारा, आंखें बंद की, बड़ा ध्यान लगाया-फिर बोलाः ऐसा है, मेरी सलाह मानिये, आप गोभी पका लीजिए। पांच साल हो गये, पति आलू लेने गया था, नहीं लौटा, जाने दीजिये; आप गोभी पका लें, या और कोई सब्जी पका लें। महिला कुछ पूछ रही है, मुल्ला कुछ उत्तर दे रहा है। दुख का मल द्वैत है 285
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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