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________________ क्योंकि वह जिससे लड़ रहा है, उससे हम अलग नहीं हैं। यह तो ऐसे हुआ कि सागर की एक लहर सागर से लड़ने लगे। तो कष्ट में पड़ जायेगी, पागल हो जायेगी; जल्दी ही तुम उसे किसी मनोवैज्ञानिक के कोच पर लेटा हुआ पाओगे इलाज करवाते। जल्दी ही किसी पागलखाने में कैद पाओगे, अगर कोई लहर सागर से लड़ने लगे। लहर सागर से कैसे लड़ेगी? लहर तो सागर ही है। सागर ही लहराया है लहर में। हम उस अरूप के रूप हैं। हम उस एक के भिन्न-भिन्न आकार हैं। हम उस अनंत की ही लहरें हैं, तरंगें हैं। हम में वही तरंगायित हुआ है। वही तुम्हारे भीतर सुन रहा है, वही मेरे भीतर बोल रहा है। वही तुम्हारी आंखों से देख रहा है. वही तम्हारे कानों से सन रहा है। वही यहां बैठा है। वही बरस रहा बाहर, वही वक्षों में हरा-भरा है। एक ही है! ___ जनक कहते हैं, जिसने दो माना, वह भ्रांति में पड़ा, वह दुख में पड़ा। क्योंकि दो मानते ही हिंसा शुरू हो जाती है, संघर्ष शुरू हो जाता है, लड़ाई शुरू हो जाती है। फिर विश्राम कहां! जिसने एक जाना, फिर लड़ना किससे है? तुम्हारे शत्रु में भी वही है, और जब मौत आये तुम्हारे द्वार, तो मौत में भी वही आयेगा; उसके अतिरिक्त कोई है ही नहीं। तुम्हारी बीमारी में भी वही है, स्वास्थ्य में भी वही है। जवानी में, बुढ़ापे में भी वही है। सफलता और विफलता में भी वही है। अनेक-अनेक रूपों में वही आता-बस वही आता है, कोई और आने को नहीं है! ऐसी जिसकी प्रतीति गहन हो जाये, फिर उसे दुख कहां? द्वैतमूलमहो दुःखं नान्यत्तस्यास्ति भेषजम्। दृश्यमेतन्मृषा सर्वं एकोऽहं चिद्रसोऽमलः।।। 'दुख का मूल द्वैत, उसकी औषधि कोई नहीं।' । अमरीका के एक बहुत विचारशील व्यक्ति ने, फ्रेंकलिन, जोन्स ने एक किताब लिखी है। किताब का नाम है : नो रेमेडी। औषधि कोई नहीं! इस सूत्र की व्याख्या है पूरी किताब। शायद इस सूत्र का फ्रेंकलिन जोन्स को कोई पता भी नहीं है। लेकिन बस इस एक छोटे-से सूत्र की व्याख्या है : औषधि कोई नहीं तस्य भेषजम् अन्यत् अस्ति–बस! कोई औषधि नहीं। ___इससे तुम थोड़े चौंकोगे भी, घबड़ाओगे भी। क्योंकि तुम बीमार हो और औषधि की तलाश कर रहे हो। तुम उलझे हो और कोई सुलझाव चाहते हो। तुम परेशानी में हो, तुम कोई हल खोज रहे हो। तुम्हारे पास बड़ी समस्याएं हैं, तुम समाधान की तलाश कर रहे हो। इसलिए तुम मेरे पास आ गये हो। और अष्टावक्र की इस गीता में जनक का उदघोष है कि औषधि कोई नहीं। ___ इसे समझना। यह बड़ा महत्वपूर्ण है। इससे महत्वपूर्ण कोई बात खोजनी मुश्किल है। और इसे तुमने समझ लिया तो औषधि मिल गई। औषधि कोई नहीं, यह समझ में आ गया, तो औषधि मिल गई। ___ जनक यह कह रहे हैं कि बीमारी झूठी है। अब झूठी बीमारी का कोई इलाज होता है ? झूठी बीमारी का इलाज करोगे तो और मुश्किल में पड़ोगे। झूठी बीमारी के लिये अगर दवाइयां लेने लगोगे, तो बीमारी तो झूठ थी; लेकिन दवाइयां नयी बीमारियां पैदा कर देंगी। इसलिए पहले ठीक-ठीक निर्णय कर लेना जरूरी है कि बीमारी सच है या झूठ? दुख का मूल द्वैत है 2811 281
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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