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________________ एक मित्र मुल्ला नसरुद्दीन को मिल गया होटल में। तो उसने कहा, यार, एक-एक पैग हो जाये तो कैसा रहे? मुल्ला ने कहा, नहीं भाई, शुक्रिया, बहुत-बहुत धन्यवाद ! नहीं, इसलिए कि एक तो मेरे धर्म में शराब पीने की मनाही है। दूसरे जब मेरी पत्नी मरने को थी, तो मैंने उसके सामने कसम खा ली है कि कभी शराब न पीऊंगा । और तीसरे अभी-अभी मैं घर से पी कर चला आ रहा हूं। आदमी बिना देखे, बिना द्रष्टा बने, कसमें खाता, व्रत ले लेता, त्याग कर देता, संकल्प बना लेता — उससे क्या होगा? उसके सोचने के ढंग तो नहीं बदलते। उसके सोचने की मौलिक प्रक्रिया तो नहीं बदलती। वह पुराने ही ढांचे में नये सिक्के ढालने लगता है; लेकिन नये सिक्कों पर मोहरें तो पुरानी ही होती हैं, हस्ताक्षर तो पुराने ही होते हैं । तुम अगर ऐसे ऊपर-ऊपर बदलने में लगे रहे, तो कभी न बदलोगे; यह तुम बदलने का धोखा दे रहे हो। बदलाहट तो आमूल होती है, जड़मूल से होती है। बदलाहट तो एक झंझावात है, एक क्रांति है, जिसमें तुम्हारा सब उखड़ जाता; जिसमें तुम्हारे देखने, सोचने, विचारने की प्रक्रियाएं समाप्त हो जाती हैं। अभिनव का जन्म होता है। अतीत से तुम्हारा समस्त संबंध विच्छेद हो जाता है । उसमें से भी तुम बचा कर नहीं लाते - किसी भी बहाने से बचा कर नहीं लाते । कुछ धन में रस था, तो तुम त्यागी बन सकते हो; लेकिन तुम्हारा रस धन में ही रहेगा। यह हो सकता है, फिर तुम लोगों को समझाओ कि बचो कामिनी- कांचन से ! कामिनी- कांचन में बड़ा खतरा है! लेकिन तुम चर्चा कामिनी - कांचन की ही करोगे । कभी-कभी शास्त्रों को देख कर बड़ी हैरानी होती है। ऋषि-मुनि निरंतर कामिनी- कांचन की बात करते रहते हैं - बचो कामिनी-कांचन से ! ऐसा लगता है, अभी भी डरे हुए हैं, और शायद दूसरों को समझाने के बहाने अपने को समझा रहे हैं। यह बात ही क्या है? ठीक है, समझाने के लिये एकाध बार कह दी, तो ठीक है, मगर यह चौबीस घंटे का राग, कि बचो कामिनी-कांचन से। ऐसा लगता है, पीछे अचेतन में अभी भी कामिनी-कांचन काम कर रहे हैं। अभी भी डरे हुए हैं। अभी भी लगता है, भय है ! अभी भी लगता है, अगर यह बात बार-बार न दोहराई, तो खतरा है कि कहीं फिर न पड़ जायें उसी जाल में। तो यह आत्म सम्मोहन का प्रयोग कर रहे हैं, वे बार-बार दोहरा रहे हैं। फ्रांस में सम्मोहक हुआ ः इमाइल कुए। वह अपने शिष्यों को कहता था कि बस एक ही बात को रोज सुबह-शाम दोहराओ कि मैं रोज अच्छा हो रहा हूं, स्वस्थ हो रहा हूं—तुम हो जाओगे। ये सारे लोग इमाइल कुए के अनुयायी मालूम होते हैं । तुम दोहराते रहो कि कामिनी कांचन पाप है, कामिनी-कांचन पाप है। लेकिन तुमने खयाल किया ? तुम उसी चीज को पाप कहते हो, जिसमें तुम्हारा रस भी होता है। सच तो यह है कि अगर चीजें पाप न हों तो उनमें रस ही खो जाता है। जिस चीज को पाप बना दो, उसमें रस आने लगता है। कहो कि पाप है तो आकर्षण पैदा होता है। तुम छोटे से बच्चे को कहों कि वहां मत जाना - बस सारी दुनिया बेकार हुई, अब वहीं जाने में रस मालूम होता है। ईसाई कथा है कि परमात्मा जब बनाया आदम और हव्वा को तो उसने कहा कि देखो और सब फल तो खाना इस बगीचे के, सिर्फ यह जो बीच में एक वृक्ष लगा है, यह ज्ञान का वृक्ष है, इसका फल मत खाना। फिर मुश्किल हो गई। मुश्किल खुद परमात्मा ने पैदा करवा दी। इतना बड़ा विराट जंगल था, कि अगर आदम- हव्वा को खुद पर छोड़ दिया होता, तो शायद अभी तक भी वे खोज न दुख का मूल द्वैत है 279
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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