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आखिरी प्रश्न : भगवान श्री कोटि-कोटि नमन ! आबू की पावन पहाड़ी पर, आपके वरदहस्त की छाया में आने का सौभाग्य हुआ, तब से कितना खोया है, कितना पाया है,
उसका हिसाब नहीं है। धन्य-धन्य हो गया है दो क्यों, तीन सही—
जीवन ! प्रश्न बनता नहीं, जबर्दस्ती बना रहा
हूं। आपके मुखारविंद से शिविर समापन के दिन दो शब्द सुनने के लिए बेचैन हो रहा हूं, भिक्षा पात्र में दो फूल डालने की अनुकंपा आज जरूर करें !
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हरि ॐ तत्सत्
हरि ॐ तत्सत् !
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