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________________ धर्म' कह सकते हैं। अतिपार्थिव, पृथ्वी का धर्म है ! इसलिए तो पारसी दूसरे धार्मिकों को धार्मिक नहीं मालूम होते । नाचते-गाते, प्रसन्न ! जरथुस्त्र का धर्म हंसता हुआ धर्म है; जीवन के स्वीकार का धर्म है; निषेध नहीं है, त्याग नहीं है। तुमने कोई पारसी साधु देखा - नंग-धड़ंग खड़ा हो जाये, छोड़ दे, धूप में खड़ा हो जाये, धूनी रमा कर बैठ जाये ? नहीं, पारसी धर्म में जीवन को सताने, कष्ट देने की कोई व्यवस्था नहीं है। जरथुस्त्र का सारा संदेश यही है कि जब हंसते हुए परमात्मा को पाया जा सकता है तो रोते हुए क्यों पाना ? जब नाचते हुए पहुंच सकते हैं उस मंदिर तक तो नाहक कांटे क्यों बोने ? जब फूलों के साथ जाना हो सकता है तो यह दुखवाद क्यों ? इसलिए ठीक है, प्रतीक ठीक है कि जरथुस्त्र पैदा होते ही हंसे। इन कथाओं में इतिहास मत खोजना। ऐसा हुआ है — ऐसा नहीं है। लेकिन इन कथाओं में एक बड़ा गहरा अर्थ है। तुम्हारे पास एक बीज पड़ा है। जब तुम बीज को देखते हो तो इससे पैदा होने वाले फूल की कोई भी तो खबर नहीं मिलती। यह क्या हो सकता है, इसकी भनक भी तो नहीं आती। यह कमल बनेगा, खिलेगा, जल में रहेगा और जल से अछूता रहेगा, सूरज की किरणों पर नाचेगा और सूरज भी ईर्ष्यालु होगा - इसके सौंदर्य से, इसकी कोमलता से, इसकी अपूर्व गरिमा, इसके प्रसाद से; इसकी सुगंध आकाश में उड़ेगी- -यह बीज को देख कर तो पता भी नहीं चलता। बीज को तो देख कर इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, अनुमान भी नहीं कर सकता। लेकिन एक दिन यह घटता है। तो दो तरह से हम सोच सकते हैं। या तो हम बीज को पकड़ लें जोर से और हम कहें, जो बीज में दिखाई नहीं पड़ा वह कमल में भी घट नहीं सकता। यह भ्रम है। यह धोखा है। यह झूठ है । जिनको हम तर्कनिष्ठ कहते हैं, संदेहशील कहते हैं, उनका यही आधार है। वे कहते हैं, जो बीज में नहीं दिखायी पड़ा वह फूल में हो नहीं सकता; कहीं भ्रांति हो रही है। इसलिए संदेहशील व्यक्ति बुद्ध को मान नहीं पाता ; महावीर को स्वीकार नहीं कर पाता ; जीसस को अंगीकार नहीं कर पाता। क्योंकि वे कहते हैं, हमने जाना इनको । जीसस अपने गांव में आये, बड़े हैरान हुए गांव के लोगों ने कोई चिंता ही न की । जीसस का वक्तव्य है कि पैगंबर की अपने गांव में पूजा नहीं होती । कारण क्या रहा होगा ? क्यों नहीं होती गांव में पूजा पैगंबर की ? गांव के लोगों ने बचपन से देखा : बढ़ई जोसेफ का लड़का है! लकड़ियां ढोते देखा, रिंदा चलाते देखा, लकड़ियां चीरते देखा, पसीने से लथपथ देखा, सड़कों पर खेलते देखा, झगड़ते देखा। गांव के लोग इसे बचपन से जानते हैं— बीज की तरह देखा। आज अचानक यह हो कैसे सकता है कि यह परमात्मा का पुत्र हो गया ! . नहीं, जिसने बीज को देखा है, वह फूल को मान नहीं पाता। वह कहता है, जरूर धोखा होगा, बेईमानी होगी। यह आदमी पाखंडी है। बुद्ध अपने घर वापस लौटे, तो पिता... सारी दुनिया को जो दिखाई पड़ रहा था वह पिता को दिखायी नहीं पड़ा! सारी दुनिया अनुभव कर रही थी एक प्रकाश, दूर-दूर तक खबरें जा रही थीं, दूर देशों से लोग आने शुरू हो गये थे; लेकिन जब बुद्ध वापस घर आये बारह साल बाद, तो पिता ने कहा: मैं तुझे अभी भी क्षमा कर सकता हूं यद्यपि तूने काम तो बुरा किया है, सताया तो तूने हमें, सत्य का शुद्धतम वक्तव्य
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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