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________________ धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिलता है? अगर धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिल सकता है तो ऊंट भी छप्परों पर मिल सकते हैं। ___इब्राहीम चौंका। आधी रात थी, वह उठा, भागा। उसने आदमी दौड़ाए कि पकड़ो इस आदमी को. यह कछ जानकार आदमी मालम होता है। लेकिन तब तक वह आदमी निकल गया। इब्राहीम ने आदमी छुड़वा रखे राजधानी में कि पता लगाओ कौन आदमी था। कोई पहुंचा हुआ फकीर मालूम होता है। क्या बात कही? किस प्रयोजन से कही है? लेकिन रात भर इब्राहीम फिर सो न सका। दूसरे दिन सुबह जब वह दरबार में बैठा था, तो वह उदास था, मलिनचित्त था, क्योंकि बात तो उसको चोट कर गई। जनक जैसा आदमी रहा होगा। चोट कर गई कि बात तो ठीक ही कहता है। अगर यह आदमी पागल है तो मैं कौन-सा बुद्धिमान हूं? किसको मिला है सुख संसार में? यहीं तो मैं भी खोज रहा हूं। सुख संसार में मिलता नहीं और अगर मिल सकता है तो फिर ऊंट भी मिल सकता है। फिर असंभव घटता है। फिर कोई अड़चन नहीं है। पर यह आदमी कौन है? कैसे पहुंच गया छप्पर पर? फिर कैसे भाग गया, कहां गया? वह चिंता में बैठा है। बैठा है दरबार में। दरबार चल रहा है, काम की बातें चल रही हैं, लेकिन आज उसका मन यहां नहीं। मन कहीं उड़ गया। मन-पक्षी किसी दूसरे लोक में जा चुका है। जैसे त्याग घट गया! एक छोटी-सी बात, जैसे खुद अष्टावक्र छप्पर पर चढ़ कर बोल गए। तभी उसने देखा कि दरवाजे पर कुछ झंझट चल रही है। एक आदमी भीतर आना चाहता है और दरबार से कह रहा है कि मैं इस सराय में रुकना चाहता हूं। और दरबान कह रहा है कि 'पागल हो, यह सराय नहीं है, सम्राट का महल है! सराय बस्ती में बहुत हैं, जाओ वहां ठहरो।' पर वह आदमी कह रहा है, मैं यहीं ठहरूंगा। मैं पहले भी यहां ठहरता रहा हूं और यह सराय ही है। तुम किसी और को बनाना। तुम किसी और को चराना। ___ अचानक उसकी आवाज सुन कर इब्राहीम को लगा कि यह आवाज वही है और यह फिर वही आदमी है। उसने कहा, उसे भीतर लाओ, उसे हटाओ मत। ___ वह भीतर लाया गया। इब्राहीम ने पूछा कि तुम क्या कह रहे हो? यह किस तरह की जिद कर रहे हो? यह मेरा महल है। इसको तुम सराय कहते हो? यह अपमान है! उसने कहा, अपमान हो या सम्मान हों, एक बात पूछता हूं कि मैं पहले भी यहां आया था, लेकिन तब इस सिंहासन पर कोई और बैठा था। इब्राहीम ने कहा, वे मेरे पिताश्री थे, मेरे पिता थे। और उस फकीर ने कहा, इसके भी पहले मैं आया था, तब कोई दूसरा ही आदमी बैठा था। तो उसने कहा, वे मेरे पिता के पिता थे। तो उसने कहा, इसलिए तो मैं इसको सराय कहता हूं। यहां लोग बैठते हैं, चले जाते हैं, आते हैं चले जाते हैं। तुम कितनी देर बैठोगे? मैं फिर आऊंगा, फिर कोई दूसरा बैठा हुआ मिलेगा। इसलिए तो सराय कहता हूं। यह घर नहीं है। घर तो वह है जहां बस गए तो बस गए; जहां से कोई हटा न सके, जहां से हटना संभव ही नहीं। इब्राहीम, कहते हैं, सिंहासन से उतर गया और उसने उस फकीर से कहा कि प्रणाम करता हूं। जागरण महामंत्र है 1831
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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