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की है; कर्मयोगी अपना अर्थ निकाल लेता है, क्योंकि कृष्ण ने कर्मयोग की भी बात की है; ज्ञानी अपना अर्थ निकाल लेता है, क्योंकि कृष्ण ने ज्ञान की भी बात की है। कृष्ण कहीं भक्ति को सर्वश्रेष्ठ कहते हैं, कहीं ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ कहते हैं, कहीं कर्म को सर्वश्रेष्ठ कहते हैं। __कृष्ण का वक्तव्य बहुत राजनैतिक है। वे राजनेता थे—कुशल राजनेता थे! सिर्फ राजनेता थे, इतना ही कहना उचित नहीं-कुटिल राजनीतिज्ञ थे, डिप्लोमैट थे। उनके वक्तव्य में बहुत-सी बातों का ध्यान रखा गया है। इसलिए सभी को गीता भा जाती है। इसलिए तो गीता पर हजारों टीकाएं हैं; अष्टावक्र पर कोई चिंता नहीं करता। क्योंकि अष्टावक्र के साथ राजी होना हो तो तुम्हें अपने को छोड़ना पड़ेगा। बेशर्त! तुम अपने को न ले जा सकोगे। तुम पीछे रहोगे तो ही जा सकोगे। कृष्ण के साथ तुम अपने को ले जा सकते हो। कृष्ण के साथ तुम्हें बदलने की कोई भी जरूरत नहीं है। कृष्ण के साथ तुम मौजूं पड़ सकते हो।
ता पर टीकाएं लिखीं-शंकर ने, रामानुज ने. निम्बार्क ने, वल्लभ ने, सबने। सबने अपने अर्थ निकाल लिए। कृष्ण ने कुछ ऐसी बात कही है जो बहु-अर्थी है। इसलिए मैं कहता हूं, काव्यात्मक है। कविता में से मनचाहे अर्थ निकल सकते हैं। . कृष्ण का वक्तव्य ऐसा है जैसे वर्षा में बादल घिरते हैं : जो चाहो देख लो। कोई देखता है हाथी की सुंड; कोई चाहे गणेश जी को देख ले। किसी को कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता-वह कहता है, कहां की फिजूल बातें कर रहे हो? बादल हैं! धुआं—इसमें कैसी आकृतियां देख रहे हो? ___ पश्चिम में वैज्ञानिक मन के परीक्षण के लिए स्याही के धब्बे ब्लाटिंग पेपर पर डाल देते हैं और व्यक्ति को कहते हैं, देखो, इसमें क्या दिखायी पड़ता है ? व्यक्ति गौर से देखता है; उसे कुछ न कुछ दिखाई पड़ता है। वहां कुछ भी नहीं है, सिर्फ ब्लाटिंग पेपर पर स्याही के धब्बे हैं—बेतरतीब फेंके गये, सोच-विचार कर भी फेंके नहीं गये हैं, ऐसे ही बोतल उंडेल दी है। लेकिन देखने वाला कुछ न कुछ खोज लेता है। जो देखने वाला खोजता है वह उसके मन में है; वह आरोपित कर लेता है।
तुमने भी देखा होगा : दीवाल पर वर्षा का पानी पड़ता है, लकीरें खिंच जाती हैं। कभी आदमी की शक्ल दिखायी पड़ती है, कभी घोड़े की शक्ल दिखायी पड़ती है। तुम जो देखना चाहते हो, आरोपित कर लेते हो।
रात के अंधेरे में कपड़ा टंगा है-भूत-प्रेत दिखायी पड़ जाते हैं। । कृष्ण की गीता ऐसी ही है—जो तुम्हारे मन में है, दिखायी पड़ जायेगा। तो शंकर ज्ञान देख लेते हैं, रामानुज भक्ति देख लेते हैं, तिलक कर्म देख लेते हैं और सब अपने घर प्रसन्नचित्त लौट आते हैं कि ठीक, कृष्ण वही कहते हैं जो हमारी मान्यता है। ___ इमर्सन ने लिखा है कि एक बार एक पड़ोसी प्लेटो की किताबें उनसे मांग कर ले गया। अब प्लेटो दो हजार साल पहले हुआ और दुनिया के थोड़े-से अनूठे विचारकों में से एक। कुछ दिनों बाद इमर्सन ने कहा, किताबें पढ़ ली हों तो वापस कर दें। वह पड़ोसी लौटा गया। इमर्सन ने पूछा, कैसी लगीं? उस आदमी ने कहा कि ठीक। इस आदमी, प्लेटो के विचार मुझसे मिलते-जुलते हैं। कई दफे तो मुझे ऐसा लगा कि इस आदमी को मेरे विचारों का पता कैसे चल गया! प्लेटो दो हजार साल पहले हुआ है। इसको शक हो रहा है कि इसने कहीं मेरे विचार तो नहीं चुरा लिए!
अष्टावक्र: महागीता भाग-1
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