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ही समझना। समझपूर्वक उसकी मंजूषा बनाओ। फिर धीरे-धीरे तुम पाओगे, जब-जब अनुभव घटेगा, जो अनुभव घटेगा, उस अनुभव को सुस्पष्ट, सुविश्लिष्ट कर देने वाले मेरे शब्द तुम्हारे अचेतन से उठकर खड़े हो जाएंगे। मैं तुम्हारा साक्षी बन जाऊंगा। मैं तुम्हारा गवाह हूं।
लेकिन अगर सुनते वक्त तुम मेरे साथ विवाद कर रहे हो तो फिर मैं तुम्हारा गवाह न बन सकूँगा। अगर सुनते वक्त तुम मुझसे किसी तरह का आंतरिक संघर्ष कर रहे हो, तर्क कर रहे हो; अगर सुनते वक्त तुम मुझे सहानुभूति, प्रेम से नहीं सुन रहे हो, विवाद कर रहे हो तो मैं तुम्हारा गवाह न बन सकूँगा। क्योंकि फिर तुम जो अपनी मंजूषा में रखोगे, वह मेरा नहीं होगा, तुम्हारा ही होगा। ___कल रात आस्ट्रेलिया से आए एक मनोवैज्ञानिक ने संन्यास लिया। उस मनोवैज्ञानिक को मैंने कहा कि तुम संन्यास न लो, तो भी तुम्हारा स्वागत है। लेकिन तब तुम मेरे अतिथि न रहोगे। स्वागत तो तुम्हारा है। अगर तुम संन्यास ले लो तो भी स्वागत तुम्हारा है, पर तुम मेरे अतिथि भी हो गए।
मुझसे लोग पूछते हैं कि 'अगर हम संन्यास न लें तो क्या आपका प्रेम हम पर कम रहेगा?' मेरा प्रेम तुम पर पूरा रहेगा। स्वागत है। लेकिन संन्यास लेते ही तुम अतिथि भी हो गए।
और बड़ा फर्क है। बिना संन्यास लिए तुम सुन रहे हो दूरी से; संन्यास लेकर तुम पास आ गए। बिना संन्यास लिए तुम सुन रहे हो, अपनी बुद्धि से विश्लेषण कर रहे हो, तुम छांट रहे हो मैं जो कह रहा हूं। उसमें जो तुम्हें मन-भाता है, वह रख लेते हो; जो मन नहीं भाता, वह छोड़ देते हो। और संभावना इसकी है कि जो तुम्हें मन नहीं भाता है वही काम पड़ने वाला है। क्योंकि तुम्हें जो मन-भाता है, वह तुम्हें बदल नहीं सकता। तुम्हें मन-भाता है, उसका अर्थ है तुम्हारे अतीत से मेल खाता है। जो तुम्हारे अतीत से मेल नहीं खाता, वही तुम्हारे भीतर क्रांति की किरण बनेगा। जो तुमसे मेल नहीं खाता वही तुम्हें रूपांतरित करेगा। जो तुमसे बिलकुल मेल खा जाता है, वह तुम्हें मजबूत करेगा, रूपांतरित नहीं करेगा। तो तुम चुन रहे हो। तुम सोचते हो तुम बुद्धिमान हो।
बुद्धिमान कभी-कभी बड़ी नासमझियां करते हैं। वे चुन रहे हैं बैठे। वे चुनते रहते हैं। अपने मतलब का जो है, वह सम्हाल लेंगे; जो अपने मतलब का नहीं, उससे हमें क्या लेना-देना!
लेकिन मैं तुमसे फिर कहता हूं : जो तुम्हें लगता है तुम्हारे मतलब का नहीं है, वही किसी दिन तुम्हारे काम पड़ेगा। आज तुम्हारे पास उसको समझने का भी कोई उपाय नहीं है, क्योंकि तुम्हारे पास उसका कोई अनुभव नहीं है। लेकिन फिर भी मैं कहता हूं, सम्हाल कर रख लो। किसी दिन अनुभव जब आएगा, तो अचानक तुम्हारे अचेतन से उठेगी बात और हल कर जाएगी। तब तुम अवाक न रहोगे। तब तुम्हारा विस्मय तुम्हें तोड़ नहीं देगा। और तब तुम घबड़ा न जाओगे और बेचैनी न होगी।
ऊपर ही ऊपर, जो हवा ने गाया देवदारू ने दोहराया जो हिम-चोटियों पर झलका जो सांझ के आकाश से छलका वह किसने पाया? जिसने आयत करने की आकांक्षा का हाथ बढाया?
जागो और भोगो
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