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________________ जाएगी, पिछड़ जाएगी, मर जाएगी, कुचल जाएगी! वह वहीं थरथराकर बैठ जाएगा, लड़खड़ाकर गिर पड़ेगा; शायद घर न आ सके, या बेहोश हो जाए। ___ और यह उदाहरण कुछ भी नहीं है। जब तुम्हारे जीवन में द्रष्टा का प्रवेश होगा, एक किरण भी द्रष्टा की आएगी, तो यह उदाहरण कुछ भी नहीं है-वह घटना और भी बड़ी है। भीतर की आंख खुल रही है। तुमने उस भीतर की आंख के बिना ही अपना एक संसार रच लिया है। अचानक वह भीतर की आंख खुलते ही तुम्हारे सारे संसार को गलत कर देगी। तुम चौंककर अवाक रह जाओगे। जिसने पूछा है, ठीक ही पूछा है और अनुभव से पूछा है। इसे खयाल करना। प्रश्न दो तरह के होते हैं। एक तो सैद्धांतिक होते हैं। उनका कोई बड़ा मूल्य नहीं होता। यह प्रश्न अनुभव का है। अनुभव से न हुआ होता तो यह प्रश्न बन ही नहीं सकता था। ये पैर लड़खड़ाए न होते तो यह प्रश्न बन नहीं सकता था। यह प्रश्न सीधे अनुभव का है। 'कहीं से द्रष्टा की याद आ गई।' गूंज रहे होंगे अष्टावक्र के वचन। जो मैंने कहा था सुबह, उसकी गूंज बाकी रह गई होगी, उसकी सुगंध तुम्हारे भीतर उठ रही होगी, उसकी थोड़ी-सी लकीरें कहीं उलझी रह गई होंगी। 'आ गई कहीं से द्रष्टा की याद! द्रष्टा का खेल थोड़ी देर चला।' शायद क्षण भर ही चला हो। वह क्षण भी बहुत लंबा मालूम होता है जब खेल द्रष्टा का चलता है, क्योंकि द्रष्टा समयातीत है। यहां घड़ी में क्षण बीतता है, वहां द्रष्टा होने में ऐसा लग सकता है कि सदियां बीत गईं। यह घड़ी वहां काम नहीं आती। यह घड़ी भीतर की आंख के लिए नहीं बनी है। ___ 'थोड़ी देर खेल चला, लेकिन इसी बीच मेरे पैर लड़खड़ाने लगे, जिनसे बचने के लिए मैं सड़क के किनारे बैठ गया।' यह लड़खड़ाहट बताती है कि घटना घटी। प्रश्न पूछने वाले ने सुनकर प्रश्न नहीं पूछा है, पढ़कर प्रश्न नहीं पूछा है-कुछ घटा। __ 'और तभी न दृश्य रहा, न दर्शक रहा, न द्रष्टा रहा।' उस लड़खड़ाहट में सब बिखर गया, सब खो गया। ऐसी घड़ी में ही कभी विक्षिप्तता आ सकती है, अगर धीरे-धीरे अभ्यास न हो। अगर रत्ती-रत्ती हम इसको आत्मसात न करते चलें और यह एकदम से फूट पड़े, तो विस्फोट हो सकता है। 'सब कुछ समाप्त हो गया और फिर भी कुछ था।' निश्चित कुछ था। वस्तुतः पहली दफा सब कुछ था। तुम्हारा सब कुछ समाप्त हो गया। तुमने जो बना ली थी अपनी छोटी-सी घासफूस की कुटिया-वह गिर गई। आकाश था, चांद-तारे थे। परमात्मा ही बचा! तुमने जो बना ली थी सीमाएं, रेखाएं-वे खो गईं। निरभ्र आकाश बचा! तुमने जो छोटे-से में रहने का अभ्यास कर लिया था, वह लड़खड़ा गया। उसी लड़खड़ाहट में तुम भी घबड़ाकर सड़क के किनारे बैठ गए। निश्चित कुछ था। लेकिन जिसको यह अनुभव हुआ, अवाक कर गया। वह पकड़ नहीं पाया, क्या था, कौन था! तुम्हें खयाल है? कभी-कभी ऐसा होता है, सुबह अचानक कोई तुम्हें जगा दे जब तुम गहरी नींद जागो और भोगो 145
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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