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________________ मंदिरों में देखो ! मंदिर के भीतर वे सब धुले - पुंछे, उघड़े, अवलिप्त...! कैसे लोग निर्दोष मालूम पड़ते हैं मंदिर में। उन्हीं शक्लों को बाजार में देखो, उन्हीं को मंदिर में देखो। मंदिर में उनका आवरण भिन्न मालूम होता है। खुले गले से, मुखर स्वरों में अति प्रगल्भ, गाते जाते थे राम-नाम । देखा तुमने माला लिए, किसी को राम-नाम जपते ? राम चदरिया ओढ़े, चंदन - तिलक लगाएलगती है प्रतिमा ! इन्हीं सज्जन को बाजार में देखो, भीड़-भाड़ में देखो, पहचान भी न पाओगे । लोगों के चेहरे अलग-अलग हैं; बाजार में एक चेहरा ओढ़ लेते हैं, मंदिर में एक चेहरा ओढ़ लेते हैं। अति प्रगल्भ, गाते जाते थे राम-नाम भीतर सब गूंगे, बहरे, अर्थहीन जलपक, निर्बोध, अयाने, नाटे, पर बाहर, जितने बच्चे उतने ही बड़बोले ! जानकारी तुम्हें तोता बना सकती है, बड़बोला बना सकती है। जानकारी तुम्हें धार्मिक होने की भ्रांति दे सकती है, धोखा दे सकती है। लेकिन ज्ञान उसे मत मान लेना। और जानकारी के आधार पर `तुम जो निष्ठा सम्हालोगे, वह निष्ठा संदेह के ऊपर बैठी होगी, संदेह कंधे पर सवार होगी । वह निष्ठा कहीं सत्य के द्वार तक ले जाने वाली नहीं है। उस निष्ठा पर बहुत भरोसा मत करना। वह निष्ठा दो कौड़ी की है। निष्ठा आनी चाहिए स्वानुभव से । निष्ठा आनी चाहिए शुद्ध निर्विकार स्वयं की ध्यान- अवस्था से। जागो और भोगो 143
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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