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________________ को मानने के साथ-साथ आंख के कोने से देख रहे थे, अभी तक मिला कि नहीं मिला ? नजर अभी भी मिलने पर लगी थी। मेरे पास लोग आते हैं। उनको मैं कहता हूं कि ध्यान तब तक न गहरा होगा, जब तक तुम कुछ मांग जारी रखोगे। जब तक तुम सोचोगे कुछ मिले - आनंद मिले, परमात्मा मिले, आत्मा मिले- तब तक ध्यान गहरा न होगा; क्योंकि यह लोभ की वृत्ति है, जो मिलने की बात सोच रही है; यह महत्वाकांक्षा है, यह राजनीति है, अभी धर्म नहीं हुआ। तो वे कहते हैं, 'अच्छा! तो अब बिना सोचे बैठेंगे, फिर तो मिलेगा न ?' अंतर जरा भी नहीं पड़ा। वे इसके लिए भी राजी हैं कि न सोचेंगे, चलो आप कहते हो मिलने के लिए यही उपाय है, तो न सोचेंगे; लेकिन फिर मिलेगा न ? तुम लोभ से छूट नहीं पाते । अष्टावक्र को सुनकर बड़े जल्दी, बहुत लोग मान लेंगे कि चलो, मिल गया। इतनी जल्दी अगर मिलता होता ! और ऐसा नहीं है कि कोई बाधा है मिलने में । बाधा है तो तुम्हारी कामना की नासमझी ही । है तो बिलकुल पास। ठीक अष्टावक्र कहते हैं, मिला ही हुआ है। लेकिन 'यह मिला हुआ ही है' तब समझ में आयेगा, जब पाने की सारी आकांक्षा विसर्जित हो जायेगी। तब तुम्हारी समग्रता से तुम जानोगे कि मिला हुआ है। अभी तो बुद्धि का खिलवाड़ हो जाता है। अष्टावक्र जैसे महर्षि कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। तुम जल्दी कर लेते हो मानने की । तुम्हारी श्रद्धा बड़ी नपुंसक है। तुम संदेह भी नहीं करते, तुम जल्दी मान लेते हो । शास्त्र के वचन पर इस देश में तो संदेह करने की आदत ही खो गई है; शास्त्र कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन आया, तो एक बड़ी खूबसूरत छतरी लिए हुए था। मैंने पूछा, कहां मिल गई? इतनी खूबसूरत छतरी यहां तो बनती नहीं ! उसने कहा, बहन ने भेंट भेजी है। मैंने कहा, नसरुद्दीन ! तुम तो सदा कहते रहे कि तुम्हारी कोई बहन नहीं ! वह कहने लगा, यह बात तो सच है। तो फिर मैंने कहा, यह बहन ने भेंट भेजी ? उसने कहा, अब आप न मानो तो इसकी डंडी पर लिखा हुआ है : बहन की ओर से भाई को भेंट | एक होटल से निकलने लगा, यह छतरी पर लिखा था, मैंने सोचा अब हो न हो, बहन हो ही । जब लिखा हुआ है तो मानना ही पड़ता है। और फिर ऐसे कोई फुफेरी, ममेरी, कोई चचेरी बहन शायद हो भी। और फिर अध्यात्मवादी तो सदा से कहते हैं कि अपनी पत्नी को छोड़कर सभी को माता-बहन समझो । लिखी हुई बात पर - - और फिर शास्त्र में लिखी हो ! छपी बात पर बड़ी जल्दी श्रद्धा आती है। कुछ बात कहो किसी से, वह कहता है, कहां लिखी है? लिखा हुआ बता दो तो वह राजी हो जाता है। जैसे लिखे होने में कोई बल है। कितनी पुरानी ? तो लोग राजी हो जाते हैं। जैसे सत्य का पुराना होने से कोई संबंध है! किसने कही ? अष्टावक्र ने कही ? बुद्ध ने कही ? महावीर ने कही ? - तो फिर ठीक ही कही। 136 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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