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प्राण ने जाले बुने-तुम तो सोये रहे। जागो! जागते ही तुम पाओगे तुमने तो कभी कुछ किया नहीं। तुम तो करना भी चाहो तो कुछ कर नहीं सकते। अकर्म तुम्हारा स्वभाव है। अकर्ता तुम्हारी स्वाभाविक दशा है।
'तू असंग, क्रिया-शून्य, स्वयं-प्रकाश और निर्दोष है।'
यह सुनी घोषणा? तू निर्दोष है! तो जो कुछ तुम्हें सिखाया हो पंडितों ने, पुरोहितों ने-फेंको! तम निर्दोष हो। उनकी सिखावन ने बड़े खतरे किये हैं: तम्हें पापी बना दिया। तम्हें हजार तरह की बातें सिखा दी कि तुम ऐसे बुरे हो। तुम में दीनता भर दी और अपराध का भाव भर दिया। तुम निर्दोष हो, निरपराधी हो।
'तेरा बंधन यही है कि तू समाधि का अनुष्ठान करता है।'
इस वचन की क्रांति तो देखो! तेरा बंधन यही है कि तू समाधि का अनुष्ठान करता है कि तू आयोजन करता है कि समाधि कैसे फले, फूल कैसे लगें ध्यान के, मुक्ति कैसे हो? अनुष्ठान !
ते बंधः हि समाधिम् अनुतिष्ठसि! यही तेरा बंधन है। उठा तलवार बोध की और काट दे! :
तो यहां तुम्हें साफ हो जायेंगी दो बातें कि योग का एक मार्ग है और बोध का बिलकुल दूसरा मार्ग है। बोध के मार्ग का प्राचीन नाम है सांख्य। सांख्य का अर्थ होता है : बोध। योग का अर्थ होता है : साधन। सांख्य का अर्थ होता है : सिर्फ जागना है बस, कुछ करना नहीं है। योग का अर्थ होता है: बहुत कुछ करना है, तब जागरण घटेगा। योग में साधन हैं; सांख्य में सिर्फ साध्य है। मार्ग नहीं है, केवल मंजिल है। क्योंकि मंजिल से तुम कभी गये ही नहीं कहीं और, तुम अपने भीतर के मंदिर में ही बैठे हो। आना नहीं है वापिस; इतना ही जानना है कि कभी गये ही नहीं।
निःसंगो निष्क्रियोऽसि त्वं स्वप्रकाशो निरंजनः। अयमेव हि ते बंधः समाधिमनुतिष्ठसि।। बस इतना ही बंधन है कि तुम मोक्ष खोज रहे हो। मोक्ष की खोज से नये बंधन निर्मित होते हैं।
एक आदमी संसार में बंधा है, फिर घबड़ा जाता है तो मोक्ष खोजने लगता है तो इधर से घर-द्वार छोड़ता है, परिवार छोड़ता है, धन-दुकान छोड़ता है, फिर नये बंधनों में बंध जाता है-साधु हो गया। अब ऐसे उठो, ऐसे बैठो, ऐसे खाओ, ऐसे पीयो-अब नये बंधन अपने चारों तरफ रच लेता है।
तुमने देखा, साधुओं की हालत कैदियों जैसी है! साधु मुक्त नहीं है। क्योंकि साधु सोच रहा है, मुक्ति के लिए पहले तो बंधन करने पड़ेंगे। यह भी खूब मजे की बात है! मुक्ति के लिए पहले बंधन मानने पड़ेंगे। मुक्त होने के लिए कोई बंधन नहीं चाहिए।
कृष्णमूर्ति की एक किताब है : द फर्स्ट ऐंड द लास्ट फ्रीडम-पहली और अंतिम मुक्ति। वह अष्टावक्र का आधुनिकतम वक्तव्य है। ___अगर मुक्त होना है तो पहले ही चरण पर मुक्त हो जाओ। यह मत सोचो कि अंत में मुक्त होएंगे। पहले चरण पर ही मुक्त होना है; दूसरे चरण पर नहीं। क्योंकि अगर पहले ही चरण पर सोचा कि तैयारी करेंगे मुक्त होने की, तो उसी तैयारी में नये बंधन निर्मित हो जायेंगे। फिर उन नये बंधनों से
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1