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तुम साधु भी नहीं, संत भी नहीं, सरल भी नहीं। तुम हो तो उन्हीं जैसे लोग, सिर्फ तुम्हारी हिम्मत कमजोर है। चाहते तो तुम भी उन्हीं जैसा मजा हो, लेकिन उस मजे के लिए जो कीमत चुकानी पड़ती है वह चुकाने में तुम डरते हो। हो तो तुम भी चोर, लेकिन चोरी करने के लिए हिम्मत चाहिए, वह हिम्मत तुम्हारी खो गयी है। चाहते तो तुम भी हो कि बेईमानी करके धन का अंबार लगा लें, लेकिन बेईमानी करने में कहीं फंस न जाएं, पकड़े न जाएं, इसलिए तुम रुके हो। अगर तुम्हें पक्का आश्वासन दे दिया जाये कि कोई तुम्हें पकड़ेगा नहीं, कोई तुम्हें पकड़ने वाला नहीं है, कोई पकड़ने का डर नहीं है—तुम तत्क्षण चोर हो जाओगे।
धार्मिक व्यक्ति तो दया खाता है उन पर जो बेईमानी कर रहे हैं। क्योंकि वह कहता है : ये बेचारे कैसे परम आनंद से वंचित हो रहे हैं! जो हमें मिल रहा है, वह इन्हें नहीं मिल रहा!
धार्मिक व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता अधार्मिक से—दया खाता है। मन ही मन में रोता है कि इन बेचारों का सिर्फ चांदी-सोने के ठीकरे ही जुटाने में सब खो जायेगा। ये मिट्टी के, रेत के घर बना-बनाकर समाप्त हो जाएंगे। जहां अमृत का अनुभव हो सकता था, वहां ये व्यर्थ में ही भटक जायेंगे। उसे दया आती है। ईर्ष्या का तो सवाल ही नहीं. क्योंकि उसके पास कछ विराटतर है। और उसी विराट के कारण उसके जीवन में एक अनुशासन होता है। उस अनुशासन के ऊपर कोई अनुशासन नहीं है।
धार्मिक व्यक्ति विद्रोही है, लेकिन अनुशासनहीन नहीं है। उसका अनुशासन आत्मिक है, आंतरिक है। आत्मानुशासन है उसका अनुशासन।
और जिसको तुम राजकता कहते हो, जिसको तुम व्यवस्था कहते हो, इस व्यवस्था ने दिया क्या है? युद्ध दिये, हिंसा दी, पाप दिये, घृणा दी, वैमनस्य दिया। दिया क्या है?
एक धरती जली है घनों के लिए प्यार पैदा हुआ तड़पनों के लिए मित्र मांगे अगर प्राण तो गम नहीं प्राण हमने दिये दुश्मनों के लिए। पापियों ने तो हमको बचाया सदा पाप हमने किए सज्जनों के लिए। प्रश्न जब भी मिले, सब मुखौटे लगा उम्र हमको मिली उलझनों के लिए। भीड़ सपनों की हमने उगायी सदा बंजरों के नगर निर्जनों के लिए। किन लुटेरों की दुनिया में हम आ गए हाथ कटते यहां कंगनों के लिए। जिंदगी ने निचोड़ा है इतना हमें
बेच डाले नयन दर्शनों के लिए। यहां है क्या? आंखें तक बिक गयी हैं—इस आशा में कि कभी दर्शन होंगे! आत्मा तक बिक गयी है—इस आशा में कि कभी परमात्मा मिलेगा! यहां पाया क्या है ? यहां व्यवस्था है कहां? इससे
। कर्म, विचार, भाव-और साक्षी।
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