SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फूल है, असली फूल नहीं। यह जैन को तुम भेज दो अमरीका, यह दो-चार साल में मांसाहार करने लगता है। चारों तरफ मांसाहार देखता है, पहले घबड़ाता है, पहले नाक-भौं सिकोड़ता है, फिर धीरे-धीरे अभ्यस्त होता चला जाता है। फिर उसी टेबल पर दूसरों को मांसाहार करते-करते देखकर धीरे-धीरे इसकी नाक, इसके नासारंध्र मांस की गंध से राजी होने लगते हैं। फिर दूसरी संस्कृति का प्रभाव! वहां हरेक व्यक्ति का कहना कि बिना मांसाहार के कमजोर हो जाओगे। देखो ओलंपिक में तुम्हारी क्या गति होती है बिना मांसाहार के ! एक स्वर्णपदक भी नहीं ला पाते। स्वर्णपदक तो दूर, तांबे का पदक भी नहीं मिलता। तुम अपनी हालत तो देखो ! हजार साल तक गुलाम रहे, बल क्या है तुममें ? तुम्हारी औसत उम्र कितनी है ? कितनी हजारों बीमारियां तुम्हें पकड़े हुए हैं ! निश्चित ही मांसाहारी मुल्कों की उम्र अस्सी साल के ऊपर पहुंच गयी है - औसत उम्र, अस्सीपचासी। जल्दी ही सौ साल औसत उम्र हो जायेगी। यहां तीस पैंतीस के आसपास हम अटके हुए हैं। कितनी नोबल प्राइज तुम्हें मिलती हैं? अगर शुद्ध शाकाहार बुद्धि को शुद्ध करता है तो सब नोबल प्राइज तुम्हीं को मिल जानी चाहिए थीं। बुद्धि कुछ बढ़ती विकसित होती दिखती नहीं । और जिन रवींद्रनाथ को मिली भी नोबल प्राइज वे शाकाहारी नहीं हैं, खयाल रखना! एकाध जैन को नोबल प्राइज मिली? क्या, मामला क्या है ? तुम दो हजार साल से शाकाहारी हो, दो हजार साल में तुम्हारी बुद्धि अभी तक शुद्ध नहीं हो पायी ? तो मांसाहारी के पास दलीलें हैं। वह कहता है, 'तुम्हारी बुद्धि कमजोर हो जाती है, क्योंकि ठीक-ठीक प्रोटीन, ठीक-ठीक विटामिन, ठीक-ठीक शक्ति तुम्हें नहीं मिलती। तुम्हारी देह कमजोर हो जाती है। तुम्हारी उम्र कम हो जाती है। तुम्हारा बल कम हो जाता है।' अमरीका में तुम रोज देखते हो, खबरें सुनते हो अखबार में कि किसी नब्बे साल के आदमी ने शादी की ! तुम हैरान होते हो। तुम कहते हो, यह मामला क्या पागलपन का है! लेकिन नब्बे साल का आदमी भी शादी कर लेता है, क्योंकि अभी भी कामवासना में समर्थ है। यह बल का सबूत है । नब्बे साल के आदमी का भी बच्चा पैदा हो जाता है। यह बल का सबूत है। तो जैसे ही कोई जाकर पश्चिम की संस्कृति में रहता है, वहां ये सब दलीलें सुनता है और प्रमाण देखता है और उनकी विराट संस्कृति का वैभव देखता है। धीरे-धीरे भूल जाता है...। महावीर को अगर पश्चिम जाना पड़ता तो वह मांसाहार नहीं करते। वह फूल स्वाभाविक था । वे कहते, ठीक! दो-चार - दस साल कम जीयेंगे, इससे हर्ज क्या ! ज्यादा जीने का फायदा क्या है ? ज्यादा जीकर तुम करोगे क्या? और थोड़े जानवरों को खा जाओगे, और क्या करोगे! महावीर से अगर किसी कहा होता तो वे कहते, जरा लौटकर तो देखो, अगर तुम सौ साल जीये और तुमने जितने जानवर, पशु-पक्षी खाये, उनकी जरा तुम कतार रखकर तो देखो ! एक मरघट पूरा का पूरा तुम खा गये ! एक पूरी बस्ती की बस्ती तुम खा गये! हड्डियों के ढेर तुमने लगा दिये अपने चारों तरफ ! एक आदमी जिंदगी में जितना मांसाहार करता है— हजारों-लाखों पशु-पक्षियों का ढेर लग जायेगा ! अगर जरा तुम सोचो कि इतना तुम...इतने प्राण तुमने मिटाये ! किसलिए ? सिर्फ जीने के लिए? और जीना किसलिए? और पशुओं को मिटाने के लिए? अगर महावीर से कोई यह कहेगा कि तुम निर्बल हो जाते हो, तो वे कहते, 'बल का हम करेंगे कर्म, विचार, भाव और साक्षी 105
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy