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________________ चाहते हो अगर मुझे दिल से फिर भला किसलिए रुलाते हो? भक्त सदा परमात्मा से कहते रहे हैं: चाहते हो अगर मुझे दिल से फिर भला किसलिए रुलाते हो? रोशनी के घने अंधेरों में क्यों नज़र से नज़र चुराते हो? पास आये न पास आकर भी पास मुझको नहीं बुलाते हो? किसलिए आसपास रहते हो? किसलिए आसपास आते हो? अगर तुमने मुझे ठीक से सुना तो तुम्हें परमात्मा बहुत बार, बहुत पास मालूम पड़ेगा। किसलिए आसपास रहते हो? किसलिए आसपास आते हो? पास आये न पास आकर भी पास मुझको नहीं बुलाते हो? चाहते हो अगर मुझे दिल से फिर भला किसलिए रुलाते हो? रोशनी के घने अंधेरों में क्यों नज़र से नज़र चुराते हो? जो व्यक्ति भाव में उतर रहा है वह बिलकुल इतने करीब है परमात्मा के कि परमात्मा की आंच उसे अनुभव होने लगती है; नजर में नजर पड़ने लगती है; सीमाएं एक-दूसरे के ऊपर उतरने लगती हैं; एक-दूसरे की सीमा में अतिक्रमण होने लगता है। यहां जो कहा जा रहा है, वह सिर्फ कहने को नहीं है; वह तुम्हें रूपांतरित करने को है। वह सिर्फ बात की बात नहीं है, वह तुम्हें संपूर्ण रूप से, जड़-मूल से बदल देने की बात है। कर्म, विचार, भाव-और साक्षी 101.
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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