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________________ लेकर जायेंगे। वे राख लेकर जायेंगे—प्रेम का अंगारा नहीं। वे ऐसी राख लेकर जायेंगे जो फिर कभी नहीं सुलगेगी। याद रखना! वह बुझ गयी! वह तो मैंने तुमसे जब कही तब ही बुझ गयी। अगर तुमने बुद्धि में ली तो राख, अगर तुमने हृदय में ले ली तो अंगारा। इसलिए प्रेम का अंगारा जिनके भीतर पैदा हो जायेगा, वह तो फिर जलेगा, फिर बुझेगा, फिर जलेगा। वह तो तुम्हें खूब तड़फायेगा। वह तो तुम्हें निखारेगा। वह तो तुम्हारे जीवन में सारा रूपांतरण ले आयेगा। दिल खोलकर अगर तुम रो सके तो अंगारा हृदय में पहुंच गया, इसकी खबर थी। अगर न रो सके तो बुद्धि तक पहुंचा। थोड़ी राख इकट्ठी हो जायेगी। तुम थोड़े जानकार हो जाओगे। तुम दूसरों को समझाने में थोड़े कुशल हो जाओगे। वाद-विवाद, तर्क करने में तुम थोड़े निपुण हो जाओगे। बाकी मूल बात चूक गयी। जहां से अंगारा ला सकते थे, वहां से सिर्फ राख लेकर लौट आये। फिर तुम उस राख को चाहे विभूति कहो, कुछ फर्क नहीं पड़ता। राख राख है। लगी आग, उठे दर्द के राग दिल से तेरे गम में आतशबयां हो गये हम। खिरद की बदौलत रहे रास्ते में गुबारे-पसे-कारवां हो गये हम। लगी आग, उठे दर्द के राग दिल से-वे आंसू आग लग जाने के आंसू थे। जब किसी को रोते देखो, उसके पास बैठ जाना! वह घड़ी सत्संग की है, वह घड़ी छोड़ने जैसी नहीं। तुम नहीं रो पा रहे तो कम से कम रोते हुए व्यक्ति के पास बैठ जाना। उसका हाथ हाथ में ले लेना, शायद बीमारी तुम्हें भी लग जाये। लगी आग, उठे दर्द के राग दिल से 'आग लग जाये! ये गैरिक वस्त्र आग के प्रतीक हैं—ये प्रेम की आग के प्रतीक हैं। तेरे गम में आतशबयां हो गये हम।। और जब तुम्हारे भीतर हृदय में पीड़ा उठेगी, विरह का भाव उठेगा, तुम्हारी श्वास-श्वास में जब अग्नि प्रगट होने लगेगी, आतशबयां...! तेरे गम में आतशबयां हो गए हम। खिरद की बदौलत रहे रास्ते में, बुद्धि की बदौलत तो रास्ते में भटकते रहे! खिरद की बदौलत रहे रास्ते में ___ गुबारे-पसे-कारवां हो गये हम। और बुद्धि के कारण धीरे-धीरे हमारी हालत ऐसी हो गयी, जैसे कारवां गुजरता है, उसके पीछे धूल उड़ती रहती है। हम धूल हो गए। धूल के अतिरिक्त बुद्धि के हाथ में कभी कुछ लगा नहीं है। खिरद की बदौलत रहे रास्ते में, गुबारे-पसे-कारवां हो गये हम। जो दिल अपना रोशन हुआ कृष्णमोहन ARRIANRAIRomspapMORONOMORRORMANAWWARWISE | कर्म, विचार, भाव-और साक्षी ।। 99 | -
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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