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________________ सक्कर मिलाकर वस्त्र से छानकर पानी निकाला हुआ शेष दहि उसे शिखरिणि शिखंड नमक डालकर मथा हुआ दहि उसे सलवण दहि, वस्त्र से छाना हुआ दहि उसे घोल और उस घोल में वडे डाले हो उसे घोलवडा अथवा घोल डालकर बनाये हुए वडे भी घोलवडा कहा जाता है । (निवि के प्रत्याख्यान में ये दहि के पाँच निवियाते (= दहि की पाँच अविगई)निवि के प्रत्याख्यान में कल्पते हैं । ॥३३॥ तिलकुट्टी निब्भंजण, पक्कतिल पक्कुसहि तरिय तिल्लमली; सक्कर गुलवाणय पाय खंड अद्धकढि इक्खुरसो ॥ ३४ ॥ तिलकुट्टि निर्भंजन पक्वतेल पक्वौषधितरित और तेल का मेल, ये तेल के पाँच नीवियाते हैं । तथा साकर गुडपानी, पक्वगुड. शक्कर और आधा उकाला हुआ गन्ने का रस ये पाँच गुड के नीवियाते हैं । ॥३४॥ पूरिय तव पूआ बीय पूअतन्नेह तुरिय घाणाई; गुलहाणी जललप्पसि, य पंचमो पूत्तिकय पूओ ॥ ३५ ॥ ___ तवी पूराय वैसी (तवी के बराबर) प्रथम पूरी, दूसरी पूरी, तथा उसी तेलादिक में तला हुआ चोथा आदि घाण, गुलधाणी, जललापसी, और पोता दिया हुई पुरी पाँचवा नीवियाता है । ॥३५॥ श्री पच्चक्खाण भाष्य
SR No.032108
Book TitleBhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages66
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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