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________________ कब करना ? कितनी बार करना ? तथा वंदन में अवनत (शिष्य के प्रणाम) कितने ? शीर्षनमन कितने ? और ये गुरूवंदन कितने आवश्यकों द्वारा विशुद्ध किया जाता है ? कितने दोषों से रहित किया जाता है ? तथा कृति कर्म (वंदनक) (वांदणा) किसलिए किया जाता है ? ये ९ द्वार इस वंदन विधि में कहे जायेंगे ||५|| ६ || पणनाम पणाहरणा, अजुग्गपण जुग्गपण चउ अदाया; चउदाय पणनिसेहा, चउ अणिसेह - ट्ठकारणया ॥ ७ ॥ गुरु वंदन के पांच नाम, पांच द्रष्टान्त, वंदन के अयोग्य पांच प्रकार के साधु, वंदन के योग्य पांच प्रकार के साधु, चार प्रकार के साधु वंदन न करे, (अर्थात् चार प्रकार के साधुओ के पास वंदन नहि करवाना चाहिये) चार प्रकार के साधु को वंदन करे, वंदन के पांच निषेधस्थान, और चार अनिषेध स्थान तथा वंदन के आठ कारण कहे जायेंगे ||७| आवस्सय मुहणंतय, तणुपेह - पणीस - दोस बत्तीसा; छगुण गुरुठवण दुग्गह, दुछवीसक्खर गुरु पणीसा ॥८॥ तथा २५ आवश्यक का वर्णन, मुहपत्ति की २५ प्रतिलेखना का वर्णन, शरीर की २५ प्रति लेखना का वर्णन, वंदन के समय टालने योग्य ३२ दोषों का वर्णन, वंदन के छ गुणों का वर्णन, गुरु स्थापना वर्णन, दो प्रकार का श्री गुरूवंदन भाष्य २३
SR No.032108
Book TitleBhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages66
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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