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________________ श्री गुरूवंदन भाष्य गुरुवंदण - मह तिविहं, तं फिट्टा छोभ बारसावत्तं; सिरनमणाइसु पढमं पुण्ण- खमासमण - दुगि बीअं ॥ १ ॥ अब देव वंदन कहने के बाद गुरूवंदन कहा जाता है, वह फेटा वंदन, छोभ वंदन और द्वादशावर्त्त वंदन (आदि) तीन प्रकार के है । उसमें मस्तक झुकाने आदि से प्रथम फेटा वंदन होता है । गुरू को दो खमासमणे संपूर्ण देने से छोभवंदन होता है ॥१॥ जह दूओ रायाणं, नमिउं कज्जं निवेइउं पच्छा; वीसज्जिओ वि वंदिअ, गच्छइ एमेव इत्थ दुगं ॥ २ ॥ जैसे दूत प्रथम राजा को नमस्कार करके कार्य का निवेदन करता है और उसके बाद राजा द्वारा विसर्जन करने पर भी ( राजा द्वारा जाने की आज्ञा मिलने पर भी) पुनः (दूसरी बार ) नमस्कार करके जाता है । इसी प्रकार गुरूवंदन में भी दो बार वंदना की जाती है (अर्थात् इसी कारण से गुरू को खमासमणे भी दो दिये जाते है और द्वादशावर्त्त वंदन भी दो बार किया जाता है | ) ||२|| श्री गुरूवंदन भाष्य २१
SR No.032108
Book TitleBhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages66
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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