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________________ भावार्थ : सयोगी गुणस्थानक में तीर्थंकर नामकर्म का उदय होने से 42 प्रकृतियाँ उदय में होती हैं । सयोगी के अंत में औदारिक द्विक, अस्थिर द्विक, विहायोगति द्विक, प्रत्येक त्रिक, 6 संस्थान, अगुरुलघुचतुष्क, वर्णचतुष्क, निर्माण, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, प्रथम संघयण, दुःस्वर, सुस्वर शाता-अशाता में से कोई एक वेदनीय । इस प्रकार 30 प्रकृतियों का उदय विच्छेद होता है ॥२१॥ दूसर सूसर साया, -साएगयरं च तीसवुच्छेओ; । बारस अजोगि सुभगाइज्ज-जसन्नयरवेअणिअ भावार्थ : अयोगी गुणस्थानक में 12 प्रकृतियों का उदय होता है। वहाँ सौभाग्य, आदेय, यश, शाता-अशाता में से एक वेदनीय, त्रस त्रिक, पंचेन्द्रिय जाति, मनुष्य आयुष्य, मनुष्यगति, जिननाम तथा उच्चगोत्र इन 12 प्रकृतियों का अयोगी गुणस्थानक के अंतिम समय में उदय विच्छेद होता है ॥२२॥ तसतिगपणिदिमणुआउ- गइजिणुच्चंतिचरिमसमयंतो । उदउव्वुदीरणा परमपमत्ताई-सगगुणेसु ॥ २३ ॥ भावार्थ : उदय की तरह उदीरणा समझनी चाहिए, परंतु अप्रमत्त आदि सात गुणस्थानकों में उदीरणा, तीन प्रकृतियों से न्यून समझनी चाहिए ॥२३॥ कर्मस्तव - द्वितीय कर्मग्रंथ
SR No.032107
Book TitleKarmgranth 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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