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________________ स नरयतिग जाइथावर-चउ हुंडायव-छिवट्ठ-नपु मिच्छं; । सोलंतो इगहिअसय, सासणि तिरिथीणदुहगतिगं ॥ ४ ॥ भावार्थ : नरकत्रिक, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, हुंडक संस्थान, आतप, सेवा संघयण, नपुंसकवेद, मिथ्यात्व मोहनीय इन 16 प्रकृतियों के बंध का विच्छेद होने से सास्वादन गुणस्थानक में 101 प्रकृतियों का बंध होता है ॥४॥ अणमज्झागिइसंघयण-चउनिउज्जोअ-कुखगइस्थित्तिः । पणवीसंतो मीसे, चउसयरि दुआउअअ-अबंधा ॥ ५ ॥ भावार्थ : तिर्यंच त्रिक, थीणद्धि त्रिक, दौर्भाग्य त्रिक, अनंतानुबंधी चतुष्क, मध्य संघयण और मध्य संस्थान, नीच गोत्र, उद्योत, अशुभविहायोगति और स्त्रीवेद इन 25 प्रकृतियों के बंध का विच्छेद होने से मिश्र गुणस्थानक में 74 कर्म-प्रकृतियों का बंध होता है, वहाँ दो आयुष्य का अबंध है ॥५॥ सम्मे सगसयरि जिणाउ-बंधि वइरनरतिअबिअकसाया;। उरलदुगंतो देसे, सत्तट्ठी तिअकसायंतो ॥ ६ ॥ भावार्थ : अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानक में तीर्थंकर नामकर्म और दो आयुष्य का बंध होने से 77 प्रकृतियों का बंध हो सकता है। २६ कर्मग्रंथ
SR No.032107
Book TitleKarmgranth 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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