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________________ पर्याप्त नामकर्म के उदय से जीव अपनी-अपनी पर्याप्तियाँ परिपूर्ण करते हैं । पर्याप्त नामकर्म दो प्रकार का हैं- (१) करण पर्याप्ता नामकर्म (२) लब्धि पर्याप्ता नाम कर्म ॥४९॥ पत्तेअतणू पत्ते-उदएणं दंतअट्ठिमाइ थिरं, । नाभुवरि सिराइ सुहं, सुभगाओ सव्वजणइट्टो ॥ ५० ॥ प्रत्येक नामकर्म के उदय से जीव अलगअलग(प्रत्येक) शरीर प्राप्त करता है । स्थिर नामकर्म के उदय से अस्थि, दांत आदि स्थिर प्राप्त होते हैं । शुभ नाम कर्म के उदय से नाभि ऊपर के शुभ अवयव प्राप्त होते हैं । सौभाग्य नामकर्म के उदय से जीव सभी व्यक्तियों(जीवों) को इष्ट/प्यारा लगता है ॥५०॥ सुसरा महुरसुहझुणी, आइज्जा सव्वलोय-गिज्झवओ, । जसओ जस-कित्तीओ, थावरदसगं विवज्जत्थं ॥ ५१ ॥ __सुस्वर नामकर्म के उदय से मधुर एवं सुखकारी वाणी प्राप्त होती है। आदेय नामकर्म के उदय से सभी लोग उसके वचन को ग्रहण (सम्मान) करते हैं । यश नाम कर्म के उदय से यश और कीर्ति प्राप्त होती हैं । इस त्रस दशक से विपरीत अर्थ वाला स्थावर दशक जानना चाहिये ॥५१॥ २० कर्मग्रंथ
SR No.032107
Book TitleKarmgranth 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Manitprabhsagar, Ratnasensuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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