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पण गब्भतिरिसुरेसु, नारय वाउसु चउर तिय सेसे। विगल दुदिट्टि थावर, मिच्छत्ति सेस तिय दिट्ठी ॥ १८ ॥
गाथार्थ : गर्भज तिर्यंच और देवताओं को पांच, नारक और वायुकाय को चार तथा शेष दंडकों में तीन समुद्घात होते हैं।
विकलेन्द्रिय जीवों को दो दृष्टि, स्थावर जीवों को मिथ्यात्व नाम की एक दृष्टि और शेष दंडकों में तीनों दृष्टियाँ होती हैं ॥१८॥ थावरबितिसु अचक्खु, चरिंदिसु तदुगं सुए भणिअं; । मणुआ चउ दंसणिणो, सेसेसु तिगं तिगं भणियं ॥ १९ ॥
गाथार्थ : सिद्धांत में स्थावर, बेइन्द्रिय और तेइन्द्रिय को सिर्फ एक अचक्षुदर्शन तथा चउरिन्द्रिय को दो दर्शन कहे गए हैं। मनुष्य के चार दर्शन हैं, शेष दंडकों में तीन-तीन दर्शन कहे गए हैं ॥१९॥ अन्नाण नाण तियतिय, सुर तिरि निरए थिरे अनाणदुर्ग; । नाणन्नाण दु विगले, मणुए पण नाण ति अनाणा ॥२०॥
गाथार्थ : देव तिर्यंच और नारक में तीन अज्ञान और तीन ज्ञान, स्थावर में दो अज्ञान, विकलेन्द्रिय में दो ज्ञान तथा दो अज्ञान और मनुष्य में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान होते हैं ॥२०॥
दंडक-लघुसंग्रहणी