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________________ के कोमल फल, गुप्त नसोंवाले सनादि के पत्ते और काटने पर बो देने से उगें (ऐसे) थूहर, घीकुंआर, गुग्गल, गिलोय आदि (वनस्पतिया) ॥ ९-१० ॥ इच्चाइणो अणेगे, हवंति भेया अणंतकायाणं, । तेसिं परिजाणणत्थं, लक्खणमेअं सुए भणियं ॥ ११ ॥ इत्यादि अनन्तकाय (जीवों) के अनेक भेद हैं । उनको अच्छी तरह से जानने के लिये ये लक्षण (निशानियाँ) शास्त्रों में कहे गए हैं ॥ ११ ॥ (सो लक्षण नीचे की गाथाओं में कहते हैं) गूढसिर-संधि-पव्वं, समभंग-महिरगं च छिन्नरुहं, । साहारणं सरीरं, तव्विवरियं च पत्तेयं ॥ १२ ॥ (जिनकी) नसें, संधियाँ और गाठें गुप्त हों (देखने में न आएँ) जिनको तोड़ने से समान टुकडे हों, जो काटने पर भी उगें (ये सब) साधारण वनस्पतिकाय के शरीर (होते हैं) और इसके विपरीत प्रत्येक वनस्पति काय का (शरीर है) ॥ १२ ॥ एग सरीरे एगो, जीवो जेसिं तु तेय पत्तेया,। फल फूल छल्लि कट्ठा, मूलग पत्ताणि बीयाणि ॥ १३ ॥ जिन (वनस्पतियों) के एक शरीर में एक जीव हो वे तो प्रत्येक (वनस्पतिकाय) हैं और (इसके सात भेद हैं) फल-फूल-छाल-काष्ठ मूल पत्ते और बीज ॥ १३ ॥ जीवविचार-नवतत्त्व
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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