SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवविचार भुवण-पईवं वीरं, नमिऊण भणामि अबुह - बोहत्थं । जीव- सरूवं किंचि वि, जह भणियं पुव्व - सूरिहिं ॥ १ ॥ भुवन (संसार) में दीपक के समान भगवान श्री महावीर स्वामी को नमस्कार करके, जैसा पूर्वाचार्यों (पूराने आचार्यों) ने कहा है (वैसा) जीव के स्वरूप से अज्ञ जीवों को ज्ञान कराने के लिये मैं कहता हूं ॥१॥ जीवा मुत्ता संसारिणो य, तस थावरा य संसारी, I पुढवी जल जलण वाऊ, वणस्सई थावरा नेया ॥ २ ॥ मोक्ष में गये हुए और संसार में रहने वाले दो प्रकार के जीव हैं । त्रस और स्थावर संसारी जीव हैं । पृथ्वी पानी अग्नि वायु और वनस्पति को स्थावर (जीव ) जानना चाहिये ॥ २ ॥ - - फलिहमणिरयण विदुम, हिंगुल हरियाल मणसिल रसिंदा, । कणगाई धाउ सेढी, वन्निय अरणेट्टय पलेवा ॥ ३ ॥ अब्भय तूरी ऊसं, मट्टी - पाहाण - जाइओ णेगा, । सोवीरंजण लूणाई, पुढवि - भेआई इच्चाइ ॥ ४॥ जीवविचार ३
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy