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________________ इरिया - भासेसणादाणे, उच्चारे समिईसु अ, । मणगुत्ति वयगुत्ति, कायगुत्ति तहेव य ॥ २६ ॥ पाँच समितियों में ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा- समिति, आदान (आदान भंड मत्त निक्खवणा) समिति और उच्चार ( उत्सर्ग समिति अथवा पारिष्ठापनिका) समिति, तथैव मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति (ये तीन गुप्तियाँ) - कुल मिलाकर ८ प्रवचनमाता ) हैं || २६ ॥ खुहा पिवासासी उन्हं, दंसा चेलारइत्थिओ, । चरिया निसीहिया सिज्जा, अक्कोस वह जायणा ॥ २७ ॥ - क्षुधापरिषह, पिपासा (तृषा) परिषह, शीतपरिषह, उष्णपरिषह, दंशपरिषह, अचेलकपरिषह, स्त्रीपरिषह, चर्यापरिषह, नैषधिकी (स्थान) परिषह, शय्यापरिषह, आक्रोशपरिषह, वधपरिषह, और याचनापरिषह ॥ २७ ॥ अलाभ रोग तणफासा, मलसक्कार परिसहा, । पन्ना अन्नाण सम्मत्तं, इअ बावीस परिसहा ॥ २८ ॥ अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल (और) सत्कारपरिषह ( एवं ) प्रज्ञा, अज्ञान तथा सम्यक्त्व, ये बाईस (२२) परिषह (हैं) ॥ २८ ॥ खंती मद्दव अज्जव, मुत्ती तव संजमे अ बोधव्वे, । सच्चं सोअं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ २९ ॥ जीवविचार - नवतत्त्व २४
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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