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________________ नाणंतराय दसगं, नव बीए नीअ साय मिच्छत्तं, । थावर दस निरयतिगं, कसाय पणवीस तिरियदुगं ॥ १८ ॥ ज्ञानावरणीय और अन्तराय मिलाकर दस, दूसरे (दर्शनावरणीय) में नौ, नीचगोत्र, असातावेदनीय, मिथ्यात्व मोहनीय स्थावर दशक, नरकत्रिक पच्चीस कषाय और तिर्यंच द्विक ॥ १८ ॥ इग बि ति चउ जाइओ, कुखगइ उवघाय हुँति पावस्स, । अपसत्थं वण्णचउ, अपढम-संघयण-संठाणा ॥ १९ ॥ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अशुभ विहायोगति, उपघात, अप्रशस्त वर्णचतुष्क (वर्ण, गंध, रस, स्पर्श), पहले के सिवाय (पाँच) संघयण और (पाँच) संस्थान; ये पापतत्त्व के (भेद) हैं ॥ १९ ॥ थावर सुहुम अपज्जं, साहारण-मथिर-मसुभ दुभगाणि, । दुस्सर-णाइज्ज-जसं, थावरदसगं विवज्जत्थं ॥ २० ॥ स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दौर्भाग्य, दुःस्वर, अनादेय और अपयश, यह स्थावर-दशक (त्रस-दशक से) विपरीत अर्थ वाला है ॥ २० ॥ इंदिअ कसाय अव्वय, जोगा पंच चउ पंच तिन्नि कमा, । किरियाओ पणवीसं, इमा ओ ताउ अणुक्कमसो ॥ २१ ॥ __ इन्द्रिय, कषाय, अव्रत और योग अनुक्रम से पाँच, चार, पाँच और तीन हैं, क्रिया २५ हैं और वे अनुक्रम से इस प्रकार हैं ॥२१॥ जीवविचार-नवतत्त्व
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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