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________________ आहार, शरीर और इन्द्रिय, (ये तीन खास तथा दूसरी) श्वासोच्छ्वास भाषा और मन (ये छह) पर्याप्तियाँ हैं । एकेन्द्रिय जीवों को, विकलेन्द्रिय जीवों को (क्रमशः) चार, पाँच, पाँच तथा छह पर्याप्तियाँ होती हैं ॥ ६ ॥ पणिदिअत्ति बलूसा, साऊ दसपाण चउ छ सग अट्ठ, । इग-दु-ति-चउरिंदीणं, असन्नि-सन्नीण नव दस य ॥७॥ ____ पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल (मन, वचन, काय योग), श्वासोच्छ्वास और आयुष्य ये दस प्राण हैं । (इनमें से) एकेन्द्रिय को, द्वीन्द्रिय को, त्रीन्द्रिय को, चतुरिन्द्रिय को, असंज्ञी पंचेन्द्रिय को, संज्ञी पंचेन्द्रिय को, (क्रमशः) चार, छह, सात, आठ, नौ और दस (प्राण) होते हैं ॥ ७ ॥ धम्माधम्मा-गासा, तिय तिय भेया तहेव अद्धा य, खंधा देस पएसा, परमाणु अजीव चउदसहा ॥ ८ ॥ तीन-तीन भेद वाले धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय तथा काल एवं स्कन्ध, देश, प्रदेश (और) परमाणु, चौदह प्रकार के अजीव (तत्व) हैं ॥ ८ ॥ धम्मा-धम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुँति अजीवा, । चलणसहावो धम्मो, थिर संठाणो अहम्मो य ॥९॥ अवगाहो आगासं, पुग्गलजीवाण पुग्गला चहा, खंधा देस पएसा, परमाणु चेव नायव्वा ॥ १० ॥। नवतत्त्व
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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