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________________ धणुसयपंच-पमाणा, नेरइया सत्तमाइ पुढवीए,। तत्तो अद्धधूणा, नेया रयणप्पहा जाव ॥ २९ ॥ सातवीं (नरक) पृथ्वी में नारकी जीवों का (शरीर) पांच सौ धनुष्य प्रमाणवाला (है) वहा से रत्नप्रभा तक आधा आधा कम समझना (चाहिये) ॥ २९ ॥ जोयण सहस्समाणा, मच्छा उरगा य गब्भया हुंति, । धणुह-पुहुत्तं पक्खिसु, भुअचारी गाउअ-पुहुत्तं ॥ ३० ॥ मछलियाँ (जलचर जीव) और गर्भज उरःपरिसर्प जीव हजार योजन के प्रमाण वाले होते हैं । पक्षियों में (खेचर जीवों में) धनुष्य पृथक्त्व (तथा) भुजपरिसर्प गव्यूत पृथक्त्व होते हैं ॥ ३० ॥ खयरा धणुहपुहुत्तं, भुयगा उरगा य जोयण पुहुत्तं, । गाउअ पुहुत्त मित्ता, समुच्छिमा चउप्पया भणिया ॥ ३१ ॥ सम्मूछिम खेचर और भूजपरिसर्प धनुष्य पृथक्त्व, उरः परिसर्प योजन पृथक्त्व, व चतुष्पद गव्यूत पृथक्त्व माप वालें कहे गये हैं ॥३१॥ छच्चेव गाउआई, चउप्पया गब्भया मुणेयव्वा, । कोसतिगं च मणुस्सा, उक्कोस सरीर-माणेणं ॥ ३२ ॥ गर्भज - चतुष्पद छ: कोस के जानना चाहिये, और मनुष्य उत्कृष्ट शरीर के प्रमाण की अपेक्षा से तीन कोस (होते हैं) ॥ ३२ ॥ जीवविचार
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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