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________________ और अधो दिशा के प्रसंग पर उर्ध्व और अधो दिशा भाग में स्थित द्रव्य पर दृष्टि स्थापित की। इस प्रकार तीनों ही प्रतिमा सम्पन्न करके प्रभु पारणे के लिए आनंद नाम के गृहस्थ के यहाँ पधारे। वहाँ उसकी बहुला नामक दासी पात्र धो रही थी। वह ठंडा (बचा) हुआ अन्न निकाल रही थी कि इतने में प्रभु को आता हुआ देखकर वह बोली कि, 'हे साधु! आपको यह कल्पता है ? प्रभु ने हाथ पसारे तब भक्तिवश हो उसने वह अन्न प्रभु को दिया। प्रभु के पारणे से प्रसन्न होकर वहाँ देवगणों ने पंच दिव्य प्रकट किये। यह देख लोग अति हर्षित हुए। राजा ने उस बहुला को दासी भाव से मुक्त किया। “प्रभु के प्रसाद से भव्य प्राणियों का भव से ही निस्तार हो जाता है तो इसमें क्या आश्चर्य है ?' (गा. 149 से 159) वहाँ से विहार करके प्रभु बहुत म्लेच्छ लोगों से भरपूर ऐसी दृढभूमि में आए। वहाँ पेढाल नामक गांव के नजदीक पेढाल नामक उद्यान में पोलास नाम के चैत्य में अष्टम तप करके प्रभु ने प्रवेश किया। वहाँ जंतुओं का उपरोध न हो, इस हेतु से एक शिलातल पर जानु तक भुजा पसारी। शरीर को किंचित् नमा कर, चित्त को स्थिर रखकर, निमेष रहित नेत्र से रुक्ष द्रव्य पर दृष्टि रखकर प्रभु ने एक रात्रि की महाप्रतिमा धारण की। उस समय शक्रेन्द्र सुधर्मा सभा में चौरासी हजार सामानिक देवताओं, तैंतीस त्रायत्रिंश देवताओं, तीन प्रकार की सभाओं चार लोकपालों, असंख्य प्रकीर्णक देवताओं, चारों दिशाओं में दृढ़ परिकर से बद्ध चौराशी हजार अंगरक्षकों, सैन्य से परिवृत्त सात सेनापतिओं, आभियोगिक देवदेवियों के गणों, और किल्विषिक आदि देवताओं के परिवार सहित सिंहासन पर आरुढ़ थे। दक्षिण लोकार्द्ध की रक्षा करने वाले वे इंद्र शक्र नामक सिंहासन पर आसीन होकर नृत्य, गीत और तीन प्रकार के विद्याविनोद द्वारा काल निर्गमन कर रहे थे। उस समय अवधिज्ञान से भगवंत को तथा प्रकार से स्थित ज्ञात करके वहाँ से तत्काल ही उठे। पैरों से पादुका त्याग कर, उत्तरासंग करके, दाहिने जानु को पृथ्वी पर स्थापित करके एवं बांये जानु को किंचित् नमाकर, पृथ्वी पर मस्तक लगाकर उन्होंने शक्रस्तव के द्वारा प्रभु को वंदना की। पश्चात् बैठकर जिनके अंग अंग में रोमांच कंचुक प्रगट हुआ है, ऐसे इंद्र ने सर्व सभा को संबोधित करते हुए इस प्रकार कहा कि-"अरे! सौधर्मलोक वासी सर्व देवताओं! श्री वीर प्रभु के अद्भुत माहात्म्य को सुनो-पंच समिति के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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