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________________ करने की इच्छा से गणिकाओं के पाड़े में आया । वहाँ अन्य वेश्याओं के मध्य में रही अपनी माता वेशिका को उसने देखा । उसके साथ रमण करने की उसकी इच्छा हुई । “अज्ञानी मनुष्य पशु जैसे ही होते हैं ।" तब उसने उसे एक आभूषण दिया और रात्रि में स्नान विलेपन आदि करके उसके घर की ओर चल दिया । मार्ग में जाते हुए उसका एक पैर विष्टा में गिर पड़ा। परंतु कामाधीन उसे उसका ख्याल भी नहीं आया। उस समय उसे प्रतिबोध करने के लिए उसकी कुलदेवी ने मार्ग में एक गाय और एक बछड़े की विकुर्वणा की । बछड़े को देखकर अपना पैर वह उस पर घिसने लगा । इतने में वह वत्स मनुष्यवाणी में गाय को कहने लगा माता! देखो यह कोई धर्मरहित निर्दयी पुरुष अपना विष्टा से भरा पैर मेरे साथ घिस रहा है।' यह सुनकर गाय बोली- 'वत्स ! खेद मत कर इसका यह अपकृत्य कुछ विशेष नहीं है। क्योंकि कामदेव का गधेड़ा होकर यह अपनी माता के साथ विलास करने के लिए त्वरित गति से जा रहा है।' यह सुनकर उसने सोचा कि, 'यह गाय मनुष्य वाणी में कैसे बोल रही है ? इसलिए पहले तो मैं उस वेश्या के विषय में जानकारी तो लूं। ऐसा विचार करके वह वेश्या के घर आया। वेश्या ने अभ्युत्थान आदि करके उसका सत्कार किया । परंतु उस गाय की वाणी से शंकित उस पुरूष के चित्त में कामव्यापार अवरुद्ध हो गया था। उसने क्षणभर रहकर वेश्या से कहा कि 'भद्रे ! तुम्हारी जो परंपरा हो वह कहो।' उसके ये वचन मानो उसने सुने ही न हों ऐसा दिखावा करके वह वेश्या उसे अनेक प्रकार के हावभाव से लुभाने लगी । " वेश्याओं का प्रथम कामशासन ही होता है ।" पुनः वह बोली कि 'यदि तुम तुम्हारी हकीकत कहोगी तो मैं तुमको दुगुना द्रव्य दूंगा । अतः तुम वास्तविक हकीकत कहो तुमको तुम्हारे माता - पिता की सौगन्ध है ।" इस प्रकार जब उसने बारम्बार कहा तब उसने जो यथार्थ था, वह कह सुनाया । यह सुनकर शंका होने से वह वहाँ से उठ गया और शीघ्र ही अपने गांव गया । वहाँ जाकर उसने उस अहीर माता पिता से पूछा कि 'मैं तुम्हारा अंगजात हूँ या खरीद किया हुआ हूँ अथवा मिला हुआ पुत्र हूँ? जो यथार्थ हो, वह कहो । उन्होंने कहा कि "तू हमारा अंगजात पुत्र ही है ।" ऐसा असत्य कहने पर पीड़ित होकर रीस चढ़ाकर वह बाहर जाने लगा । तब उन्होंने जिस प्रकार वह प्राप्त हुआ था, वह वृत्तांत यथास्थित कह सुनाया। उसे वास्तविकता का पता चला कि 'वेशिका वेश्या वस्तुतः उसकी माता ही है ।' तब वह पुनः चंपापुरी गया और वेशिका के पास जाकर अपना वृत्तांत बताया। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 79
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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