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________________ चतुर्थ सर्ग श्री महावीर स्वामी का अन्य छ: वर्ष का छद्मस्थ विहार गोशाला से सेवित श्री वीरभगवंत ने उसके पश्चात् आठ महिने तक उपसर्ग रहित मगधदेश की भूमि में विहार किया। पश्चात् आलंभिका नगरी में गये। वहाँ चार मासक्षमण करके चौमासे का उल्लंघन किया। चातुर्मास पूर्ण होने के पश्चात् उस नगरी के बाहर पारणा करके प्रभु गोशाला सहित कुंडक नामक गांव में गये। वहाँ वासुदेव के मंदिर में एक कोने में मानो रत्नमय प्रतिमा बिठाई हो वैसे प्रभु प्रतिमा धारण करके रहे। प्रकृति से निर्लज्ज और बहुत समय से की संलीनता से आतुर हुआ गोशाला वासुदेव की प्रतिमा के मुख के पास पुरुष चिह्न धर कर खड़ा रहा। इतने में वहाँ का पुजारी आया, वह गोशाला को ऐसी स्थिति में देखकर सोचने लगा कि यह या तो पिशाचग्रस्त है अथवा पागल पुरुष है।' ऐसा विचार करता हुआ वह अंदर घुसा और अच्छी तरह से देखा। तब उसने उसे नग्न देखकर सोचा कि 'यह कोई नग्न जैन साधु लगता है।' पुनः सोचा कि 'यदि मैं इसको मारूंगा तो लोग कहेगे कि इस दुष्ट ने निर्दोष ऐसे साधु को बिना कारण मारा है, इसलिए इसका गाँववालों को जो योग्य लगे वह करे। मैं यह बात गाँव के लोगों को जाकर कहूँ। ऐसा सोचकर उस गांव के लोगों को उसे बताने के लिए ले आया। शीघ्र ही गांव के बालकों ने उसे थप्पड़ और मुष्टिओं से ताड़न करना चालू किया। तब यह तो पागल है, इसलिए इसे मारना व्यर्थ है, ऐसा कहकर वृद्ध लोगों ने उसे छुड़ाया। (गा. 1 से 10) कर्मरूपी शत्रुओं का मर्दन करने वाले प्रभु वहाँ से विहार करके मर्दन नामक गांव के पास आए। वहाँ बलदेव के मंदिर में प्रतिमा धारण करके रहे। वहाँ भी पूर्व के सदृश बलदेव के मुख में पुरुषचिह्न रखकर गोशाला खड़ा रहा। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 73
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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