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________________ आपकी निंदा सुनकर मैंने क्रोध से उनको श्राप दिया कि आपका उपाश्रय जल जाए, तथापि वह उपाश्रय जरा भी जला नहीं । इसलिए हे स्वामिन्! इसका क्या कारण है ? बताईये।' सिद्धार्थ बोला- 'अरे मूढ ! वे श्री पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्य है, उनका उपाश्रय तेरे श्राप से कैसे जलेगा ? इतने में रात पड़ गई, तब वे मुनिचंद्रसूरि उपाश्रय के बाहर प्रतिमा धारण करके स्थित हुए। वो कुपन कुंमार मदिरापान करके उन्मत्त होकर घूमता घूमता वहाँ आया। उसने आचार्य को देखा। तो उस दुष्ट कुंभार ने चोर बुद्धि से आचार्य को गले से पकड़ कर श्वांस रहित कर दिया। तो भी वे शुभ ध्यान से चलित नहीं हुए । उस वेदना को सहन करते हुए उनको तत्काल ही अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ और मरण प्राप्त करके वे देवलोक में गये । उस स्थान के नजदीक में रहे हुए व्यंतर देवों ने प्रातः काल के पवन की तरह उन पर पुष्पवृष्टि करके उनकी महिमा की । (गा. 445 से 466) इधर गोशाले ने आकाश में बिजली की भांति प्रकाशमान देवश्रेणी को देखकर प्रभु को पूछा कि, स्वामी! क्या यह आपके शत्रुओं का उपाश्रय जल गया? आकाश में दृष्ट उद्योत से मुझे ऐसा अनुमान लगता है । सिद्धार्थ ने कहा कि, "अरे ऐसा मत कह, ये तो वे आचार्य शुभ ध्यान से स्वर्ग में गये । क्योंकि शुभ ध्यान कामधेनु की भांति सब मनोरथों को पूर्ण करता है। उनकी महिमा करने के लिए ये तेजोमय देवगण आए हैं। तुझ अल्पबुद्धि वाले मनुष्य को इसमें अग्नि की भ्रांति हो रही है ।" कौतुक देखने के लिए गोशाला शीघ्र ही वहाँ गया । इतने में तो देवगण स्वस्थान पर चले गये । क्योंकि 'ऐसे दुष्ट को देवदर्शन कहाँ सेहो ? परंतु वहाँ पुष्प और सुगन्धित जल की वृष्टि देखकर हर्षित हुआ । वहाँ से उपाश्रय में जाकर जहाँ उनके शिष्य सो रहे थे, उनको इस प्रकार कहने लगा, “अरे मुंडों! तुम दुष्ट शिष्य हों, क्योंकि दिन में इच्छानुसार भोजन करके सारी रात अजगर की तरह सोते रहते हो। तुम जानते भी नहीं हो कि तुम्हारे आचार्य की मृत्यु हो गई । अहो ! उत्तम कुल में जन्म लेने वाले तुम 'जैसे को गुरु के विषय में इतना भी प्रतिबंध नहीं है ? पश्चात् वे शिष्य बैठे हुए और यह पिशाच की तरह कौन बोल रहा है ? ऐसा चिंतन करने लगे। तब वे उपाश्रय से बाहर आए। वहाँ आचार्य श्री को मरण प्राप्त हुआ जानकर वे कुलीन पुत्रों की तरह अत्यन्त खेदित होकर बहुत समय तक अपनी आत्मा की निंदा करने लगे। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 62
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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