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________________ का जल उछलने लगा। ऊँची उछलती और पुनः नीचे बैठती गंगा की तरंगों से गजेन्द्र द्वारा उठाये गये वृक्ष के समान वह नाव ऊँची नीची हालक लोलक होने लगी। उसका कूपस्तंभ नष्ट हो गया, सढ़ फट गया और नाव की आत्मा समान उसका कर्णधार भयभीत हो गया। नाव में स्थित सभी जन मानो यमराज की जिह्वा के समक्ष आए हो ऐसे मरणोन्मुख होकर व्याकुल हो अपने अपने इष्टदेव का स्मरण करने लगे। उस समय कंबल और संबल नाम के दो देवों ने आकर उस उपसर्ग का निवारण किया। उनके पूर्व भव का वृत्तांत इस प्रकार है (गा. 280 से 305) मथुरापुरी में जिनदास नाम का एक वणिक् रहता था, जो कि श्रावक धर्म का पालन करता था। उसके साधुदासी नामक स्त्री थी। उन दोनों दम्पत्ती ने परिग्रह का प्रमाण करके ढोर रखने का प्रत्याख्यान किया था। इसलिए वे हमेशा आहीर लोगों की स्त्रियों के पास से दही दूध आदि लेते थे। एक बार एक आहीर स्त्री उत्तम प्रकार का दही लेकर आई, उसे खरीद कर प्रसन्न होकर साधु दासी ने उसे कहा कि 'तेरे यहाँ जो दूध दही आदि हो वह लेकर तू अन्यत्र बेचने नहीं जाना, यहाँ ही लेकर आना, हम वह ले लेगे और तेरी इच्छानुसार मूल्य दे देंगे। तब से वह अहीरनी भी खुश होकर हमेशा वैसा ही करती और साधुदासी भी उसे वस्त्रादि वस्तुएं देकर खुश करती। इस प्रकार करते करते उन दोनों में सगी बहनों जैसा स्नेह उत्पन्न हो गया। एक बार उस अहीरनी के घर पर विवाह का प्रसंग आया। तब उसने उस प्रसंग पर इस सेठ-सेठानी को निमंत्रण दिया। तब उन्होंने कहा - भद्रे! हम वणिक है, अतः हम तेरे घर नहीं आ सकेगें परंतु तुझे यदि विवाह के योग्य किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो वह हमारे घर से ले जाना। ऐसा कह कर उन्होंने वस्त्र धान्य-अलंकार आदि उसे दिये। उनकी दी हुई वस्तुओं से उसका विवाहोत्सव बहुत सुन्दर हुआ। वह उससे सगे, संबंधी, ग्वाले लोगों में शोभा का कारण हो गया। इससे वे गोपाल और ग्वालिन प्रसन्न होकर तीन वर्ष की वय के अत्यन्त शोभनीक कंबल-संबल नामक दो बैल सेठ को भेंट देने के लिए लाए। सेठ ने उसका ग्रहण नहीं किया। तो भी वे जबरदस्ती द्वार पर बाँधकर चल दिये। ‘ग्वालों का स्नेह ही होता है।' जिनदास ने सोचा कि यदि मैं इन दोनों वृषभों को छोड़ दूंगा तो अन्य साधारण पुरुष हल आदि में जोड़कर इनको दुःखी करेंगे, इधर मेरे घर पर भी उपयोग 52 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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