SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का आचरण करना चाहिये। शोक करना तो कायर पुरुष को योग्य है। इस प्रकार प्रभु ने बोध दिया। तब नंदीवर्धन स्वस्थ हुए। पश्चात् पिता के राज्य को अलंकृत करने के लिए उनको प्रार्थना की, परंतु संसार से उद्विग्न प्रभु वीर ने जब पिता के राज्य को स्वीकार नहीं किया, तब मंत्रियों ने मिलकर आग्रह पूर्वक नंदीवर्धन का राज्याभिषेक किया। (गा. 156 से 158) किसी समय चिरकाल से दीक्षा लेने के इच्छुक महावीर ने आदर सहित अपने भाई नंदीवर्धन से आज्ञा माँगी। तब नंदीवर्धन शोक युक्त गद्गद् वाणी से बोले- हे भ्राता अद्यापि मुझे माता पिता के वियोग का विस्मरण हुआ नहीं, अभी तो सर्व स्वजन भी शोक से विमुक्त हुए नहीं है, ऐसे में तुम वियोग देकर "क्षत पर क्षार “(अर्थात् जले पर नमक) छिड़कने का कार्य क्यों कर रहे हो? इस प्रकार ज्येष्ठ बंधु के आग्रह से प्रभु ने भाव यति के अलंकारों से अलंकृत होकर, नित्य कायोत्सर्ग ध्यान में रहकर, ब्रह्मचर्य का पालन करके, स्नान और अंगराग से रहित होकर, विशुद्ध ध्यान में स्थिर होकर एषणीय और प्रासुक अन्न से प्राणवृत्ति करके बड़ी मुश्किल से गृहवास में एक वर्ष व्यतीत किया। तत्पश्चात् लोकांतिक देवताओं ने आकर तीर्थ का प्रवर्तन करने का निवेदन किया। तब प्रभु ने याचकों को इच्छानुसार वार्षिक दान देना प्रारंभ किया। इंद्रादिक देवों ने और नंदीवर्धन आदि राजाओं ने श्री वीरप्रभु का यथाविधि दीक्षाभिषेक किया। राहू के द्वारा चंद्र की भांति भ्राता के विरह दुःख से आकुलित, नंदीवर्धन ने असह्य दुःख से अपने सेवक पुरुषों को आज्ञा दी कि 'देवसभा की तरह सुवर्ण की वेदिका और सुवर्ण के स्तंभवाली, सूर्य सहित मेरुगिरि के तट की तरह सुवर्ण सिंहासन से मंडित, पालक विमान की मानो छोटी बहन हो वैसी घुघरियों की माला की नादवाली, विशाल उर्मियुक्त गंगा नदी की तरह उड़ती ध्वजाओं वाली पचास धनुष लंबी, छत्तीस धनुष ऊंची और पच्चीस धनुष चौड़ी वीर प्रभु के बैठने योग्य चंद्रप्रभा नामक एक शिबिका तैयार करो। तत्काल ही उन्होने वैसी शिबिका तैयार कराई। जैसे देवताओं को मन से कार्य सिद्ध होता है, वैसे राजाओं को वचन से सिद्ध होता है। पश्चात् शक्रेन्द्र ने भी वैसी ही शिबिका तैयार कराई। दोनों ही शोभा में तुल्य शोभावाली होने से मानो जोड़ी उत्पन्न हुई हो, वैसी शोभने लगी। तब देवशक्ति से नदी में नदी की तरह 30 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy