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________________ तिरे हुए और तिराने वाले, कर्म से मुक्त एवं मुक्त कराने वाले, तथा बुद्ध एवं बोध कराने वाले आपको मैं नमन करता हूँ। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, सर्व अतिशय के पात्र, आठ कर्म का नाश करने वाले स्वामी आपको मैं नमस्कार करता हूँ। क्षेत्र, पात्र, तीर्थ, परमात्मा, स्याद्वादवादी, वीतराग और मुनि ऐसे आपको नमस्कार हो। पूज्यों के भी पूज्य, महान् से भी महान्, आचार्यों के भी आचार्य एवं ज्येष्ठ से भी ज्येष्ठ ऐसे आपको नमस्कार हो। विश्व को उत्पन्न करने वाले, योगियों के भी नाथ और योगी, पवित्र करने वाले और पवित्र, अनुत्तर और उत्तर ऐसे आपको नमन करता हूँ। पाप का प्रक्षालन करके वाले, योगाचार्य, जिससे कोई विशेष नहीं ऐसे, अग्र, वाचस्पति, और मंगल रूप आपको नमस्कार हो। सर्व तरफ से उदित हुए एक वीर सूर्य रूप और 'ॐ भूर्भुवः स्वः' इस वाणी से स्तुति करने योग्य, ऐसे आपको नमस्कार हो। सर्व जन के हितकार सर्वार्थ साधक, अमृतरूप, ब्रह्मचर्य को उदित करने वाले, आप्त और पारंगत ऐसे आपको नमस्कार हो। दक्षिणीय, निर्विकार, दयालु और वज्रऋषभ नाराच शरीर के धारक, आपको नमस्कार हो। त्रिकालज्ञ, जिनेन्द्र, स्वयंभू, ज्ञान, बल, वीर्य, तेज, शक्ति और ऐश्वर्यमय आपको नमन करता हूँ। आदि पुरूष, परमेष्ठी, महेश और क्षीरसागर में चंद्र जैसे, महावीर, धीर और तीन जगत के स्वामी आपको नमस्कार हो। (गा. 71 से 86) इस प्रकार स्तुति करके प्रभु को माता के पास रखा और उनका प्रतिबिंब और अवस्वापनिका निद्रा का भी हरण कर लिया। पश्चात् पार्श्व में क्षौमवस्त्र एवं दो कुंडल और प्रभु की शय्या पर श्रीदाम गंडक रखकर इंद्र अपने स्थान पर गये। उस समय इंद्र की आज्ञा से कुबेर से प्रेरित जंभृक देवताओं ने सिद्धार्थ राजा के गृह में सुवर्ण, माणिक्य, और वसुधारा की वृष्टि करी। (गा. 87 से 90) प्रभात काल में राजा सिद्धार्थ ने प्रभु के जन्मोत्सव में सर्वप्रथम तो कारागृह से सर्व कैदियों को छोड़ दिये। “अर्हन्त का जन्म ही भव्य प्राणियों को भवों से भी छुड़ा देता है।" तीसरे दिन माता-पिता ने प्रसन्न होकर पुत्र को सूर्य चंद्र के बिम्ब के दर्शन कराये। छठे दिन में मधुर स्वर में मंगल गीत गानेवाली, कुंकुम का अंगराग धारण करने वाली, बहुत से आभूषणों से शृंगार करने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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