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________________ उस समय तीन ज्ञान के धारक प्रभु ने ज्ञान द्वारा माता – पिता को दुःखी जानकर गर्भज्ञापन करने हेतु अपनी एक अंगुली चलायमान की। इससे तुरंत मेरा गर्भ अभी अक्षत ही है' ऐसा जानकर देवी हर्षित हुई और गर्भस्फुरण की बात सुनकर सिद्धार्थ राजा भी बहुत खुशी हुए। उस समय प्रभु ने चिंतन किया- 'अहो! अभी तो मैं अदृष्ट हूँ' फिर भी मेरे माता पिता को मुझ पर कितना स्नेह है ? इससे लगता है यदि उनके जीवित काल में मैं दीक्षा लूंगा तो अवश्य ही स्नेह के मोह से आर्तध्यान द्वारा बहुत ही अशुभ कर्म उपार्जन कर लेंगे। इसलिए माता पिता के जीवित रहते मैं दीक्षा अंगीकार नहीं करूँगा। इस प्रकार प्रभु ने सातवें महिने में अभिग्रह लिया। ___(गा. 44 से 46) अनुक्रम से गर्भस्थिति पूर्ण होने पर जिस समय सर्व दिशाएँ प्रसन्न हुई थी, सर्व ग्रह उच्च स्थान में आ गये थे। पवन पृथ्वी पर प्रसर कर प्रदक्षिण और अनुकूल प्रवाहित हो रहा था। सर्व जगत् हर्ष से परिपूर्ण था। जयकारी शुभ शकुन हो रहे थे, उस समय नव मास और साढे सात दिन व्यतीत हो जाने पर चैत्र मास की शुक्ल त्रयोदशी को चंद्र के हस्तोत्तरा नक्षत्र में आने पर त्रिशला देवी ने सिंह के लंछन से युक्त, स्वर्णसम कांतिवाले अत्यन्त सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इस अवसर पर भोगंकरा आदि छप्पन दिककुमारिकाओं ने आकर प्रभु और माता का सूतिका कर्म किया। (विस्तृत वर्णन प्रथम पर्व के अन्तर्गत ऋषभदेव चरित्र से ज्ञात करें) (गा. 47 से 52) सौधर्म इंद्र भी सिंहासनकंप से प्रभु का जन्मावसर जानकर तत्काल परिवार सहित सूतिका गृह में आए। अर्हत और उनकी माता को दूर से प्रणाम करके नजदीक आकर उन्होंने देवी पर अस्वापिनी निद्रा छोड़ी। पार्थ में देवी के भगवंत का प्रतिबिम्ब रखकर भक्तिकर्म में अतृप्त ऐसे इंद्र ने अपने शरीर के पांच रूप किये। एक रूप से प्रभु को अपने हाथों में ग्रहण किया। दूसरे रूप से प्रभु के सिर पर छत्र धारण किया। दो रूपों से प्रभु के दोनों ओर सुंदर चंवर धारण किये एवं एक रूप से वज्र उछालते एवं नृत्य करते हुए प्रभु के आगे आगे चलने लगे। इस प्रकार मेरुगिरि पर जाकर अतिपांडुकबला नामकी शिला पर प्रभु को उत्संग में लेकर सिंहासन पर बैठे। इसी समय अन्य त्रेसठ ईंद्र भी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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